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चले भी आओ अब तन्हाँ रहा जाता नहीं है

ग़ज़ल

चले भी आओ अब तन्हाँ  रहा जाता  नहीं है
बिना तेरे मेरे दिल को  करार आता  नहीं है

जहाँ देखूँ तुम्हें देखूँ तुम्हीं तुम हो सनम  मेरे
कहाँ बोलूँ मेरे दिलबर जहाँ दिखता तू नहीं है

ये रातें भी ये दिन मेरे बुलाते हैं मुझे हँसके
हवाओं को फ़िज़ाओं को कहूँ अब क्या तू नहीं है

है उलझी सी मेरी धड़कन ख़ुदी से हो रही बातें
ये दिल मेरा मुझी से अब है कह रहा तू कहीं है

इन होटों पे ख़ामोशी है तबस्सुम भी ज़रा चुप है
सभी शामिल हैं महफ़िल में कोई दिखता क्यों नहीं है

अभी सांसे हैं कुछ बाकी वोपल ठहरा है सीने में
ज़रा जल्दी से आओ अब ये पल रुकता नहीं है

आरज़ू-ए-अर्जुन

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" न रुकना कभी न थकना कभी " इस जहाँ में कौन नहीं, जो परेशान है  है कोई ऐसा, जिसकी राहें आसान है किसी को कम तो किसी को ज्यादा सहना पड़ता है ज़िंदगी जो दे, जैसे रखे, रहना पड़ता है है कदम ज़िंदा तो राहों का निर्माण कर है बाज़ुओं में दम तो मुश्किलों को आसान कर है हौंसला, तो एक लम्बी उड़ान कर है नज़र तो सच की पहचान कर मत सुना ज़िंदगी को मैं थक गया हूँ राह में और बोझिल लगेगी ये  ज़िंदगी इस राह में मत सूखने दे ये पानी अपनी ख्वाबमयी आँखों में सजा तू तमाम सपने जो छुप गए है कहीं रातों में जब रूठ जाए ये चाँद,सितारे और सूरज भी तुमसे मत होना अधीर और एक वादा करना खुद से तू रुक गया तो इन्सां नहीं तू झुक गया तो इन्सां नहीं न थकना कभी न रुकना कभी, कर खुद से बातें पर चुप रह न कभी क्या पता अगले मोड़ पे मंजिल खड़ी हो किसे खबर तेरे क़दमों तले खुशियां पड़ी हों कर नज़र ज़बर और सबर को मज़बूत तुम किसे पता कल तेरे आगे दुनिया झुकी हो . (आरज़ू ) AARZOO-E-ARJUN