ग़ज़ल
( रदीफ़ " मिले हैं )
2221, 222, 2221, 222
उलझे हुए हमको तो ये ज़ज़्बात मिले है
तेरे इश्क़ में हमको तो ये एहसास मिले है
मदमस्त तेरी आँखें क़ातिल भी कभी होंगी
आँखों से मेरे दिल को ज़ख़्म ख़ास मिले है
बेचैन से रहते हो बेताब भी होते हो
हमको भी तेरे हमदम कुछ राज़ मिले है
ऐसा भी तो होता है मोहब्बत के रास्तों पे
दिल तोड़ते वही हैं जो हमराह मिले है
बातों से मेरी जाना हो जाओगे तुम पागल
आरज़ू-ए-अर्जुन को वो अल्फ़ाज़ मिले है
आरज़ू-ए-अर्जुन
( रदीफ़ " मिले हैं )
2221, 222, 2221, 222
उलझे हुए हमको तो ये ज़ज़्बात मिले है
तेरे इश्क़ में हमको तो ये एहसास मिले है
मदमस्त तेरी आँखें क़ातिल भी कभी होंगी
आँखों से मेरे दिल को ज़ख़्म ख़ास मिले है
बेचैन से रहते हो बेताब भी होते हो
हमको भी तेरे हमदम कुछ राज़ मिले है
ऐसा भी तो होता है मोहब्बत के रास्तों पे
दिल तोड़ते वही हैं जो हमराह मिले है
बातों से मेरी जाना हो जाओगे तुम पागल
आरज़ू-ए-अर्जुन को वो अल्फ़ाज़ मिले है
आरज़ू-ए-अर्जुन
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