आखिर क्यों
क्यों खेलती है किस्मत बारह हमसे
मैं पूछता हूँ तुमसे आखिर क्यों
जब भी मौका मिला मुस्कुराने का
तू छीन लेता है मुस्कान आख़िर क्यों
दिए हैं इम्तिहान मैंने भी औरों की तरह
मेरा ही नतीजा रह जाता है आखिर क्यों
की बेपनाह मोहब्बत ग़र किसी से मैंने
कर दिया जुदा उसे भी आखिर क्यों
हर दुआ में मांगी थोड़ी सी मौत मैंने
तू देता है थोड़ी ज़िंदगी आख़िर क्यों
आरज़ू-ए-अर्जुन
क्यों खेलती है किस्मत बारह हमसे
मैं पूछता हूँ तुमसे आखिर क्यों
जब भी मौका मिला मुस्कुराने का
तू छीन लेता है मुस्कान आख़िर क्यों
दिए हैं इम्तिहान मैंने भी औरों की तरह
मेरा ही नतीजा रह जाता है आखिर क्यों
की बेपनाह मोहब्बत ग़र किसी से मैंने
कर दिया जुदा उसे भी आखिर क्यों
हर दुआ में मांगी थोड़ी सी मौत मैंने
तू देता है थोड़ी ज़िंदगी आख़िर क्यों
आरज़ू-ए-अर्जुन
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