ग़ज़ल
बहर 222 22 222 22
मत छेड़ मुझे आईनें मेरे
बेदर्द न बन आईने मेरे
हाल-ए-दिल जानता भी है
क्यों पूछता है शिकवे मेरे
टूट कर देख एक बार ज़रा
फिर गिनना ये टुकडे मेरे
आहिस्ता रख़ हाथ दिल पे
ज़ख़्म हैं अभी गहरे मेरे
राज़े उल्फत को बताऊँ कैसे
दुश्मन हैं यहाँ कितने मेरे
रोक लेते सच कह कर उन्हें
शायद नहीं था ये बसमें मेरे
Aarzoo-e-Arjun
बहर 222 22 222 22
मत छेड़ मुझे आईनें मेरे
बेदर्द न बन आईने मेरे
हाल-ए-दिल जानता भी है
क्यों पूछता है शिकवे मेरे
टूट कर देख एक बार ज़रा
फिर गिनना ये टुकडे मेरे
आहिस्ता रख़ हाथ दिल पे
ज़ख़्म हैं अभी गहरे मेरे
राज़े उल्फत को बताऊँ कैसे
दुश्मन हैं यहाँ कितने मेरे
रोक लेते सच कह कर उन्हें
शायद नहीं था ये बसमें मेरे
Aarzoo-e-Arjun
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