"बस तू ही तू है "
न जाने ऐसा क्यों है
मेरी हर आह में
मेरी हर चाह में
मेरी हर राह में
बस तू ही तू है।
हूँ तुझसे मैं बेख़बर
बेसबर, बेनज़र
फिर भी इस निगाह में
दिल की जुबां में
मेरे नामो-निशाँ में
बस तू ही तू है।
तू है दूर या मज़बूर
या मगरूर मालूम नहीं
पर इश्क़ के गुमान में
मोहब्बत के आसमान में
मेरे इस जहान में
बस तू ही तू है
मैं अधूरा सा हूँ
तेरे बिन ऐ हमनशीं
पर मेरे कारवाँ में
मेरे बागबाँ में
मेरे गुलसिताँ में
बस तू ही तू है
आरज़ू-ए-अर्जुन
न जाने ऐसा क्यों है
मेरी हर आह में
मेरी हर चाह में
मेरी हर राह में
बस तू ही तू है।
हूँ तुझसे मैं बेख़बर
बेसबर, बेनज़र
फिर भी इस निगाह में
दिल की जुबां में
मेरे नामो-निशाँ में
बस तू ही तू है।
तू है दूर या मज़बूर
या मगरूर मालूम नहीं
पर इश्क़ के गुमान में
मोहब्बत के आसमान में
मेरे इस जहान में
बस तू ही तू है
मैं अधूरा सा हूँ
तेरे बिन ऐ हमनशीं
पर मेरे कारवाँ में
मेरे बागबाँ में
मेरे गुलसिताँ में
बस तू ही तू है
आरज़ू-ए-अर्जुन
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