ग़ज़ल
मेरे दिल की ज़मीन पे फिर से कदम रख दो न
उस अधूरी सी बात को अबतो ख़तम कर दो न
हल्का हल्का सा नशा रहने दो न ऐ हुज़ूर
ख़ाली पैमानों सी हसरतें फिर से उन्हें भर दो न
शम -ए -रौशन तो करे महफ़िल को तेरी
ख़ुद अँधेरे में है बुझ रही, रौशन उसे कर दो न
दो क़दम हम हैं चले एक क़दम तुम भी चलो
फ़ासला सिर्फ़ एक कदम इसको सनम भर दो न
कौन जीता है यहाँ इस मोहब्बत के बिना
आरज़ू-ए-अर्जुन को अब तो फ़नाह कर दो न
आरज़ू-ए-अर्जुन
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