तनहाई
हवा में भीनीं सी खुशबू तो है
मगर वो फिज़ा नहीं है शायद
ये हवायें मुझसे वाकिफ नहीं है
बड़े अजनबी से लगते हैं ये झोंके ।
वही रात वही चांद वही चांदनी
मगर आंखें विरान सी है शायद
अब चांद दरारनुमा सा लगता है
चांदनी छिल देती है जिस्त को ।
ये राहों की आवारगी और
मंजिल का सफर तन्हा सा है
अब कंधे नाराज़ से हैं मेरे और
ये कदम ठहर से गए हैं शायद ।
ये वक्त जो रूकता ही नहीं कहीं,
मैं ठहरा हूँ आज भी उसी पल में
जहाँ छोड़ आया था तुझे एकदिन
इस वक्त के हाथों मज़बूर होकर ।
आरज़ू -ए-अर्जुन
हवा में भीनीं सी खुशबू तो है
मगर वो फिज़ा नहीं है शायद
ये हवायें मुझसे वाकिफ नहीं है
बड़े अजनबी से लगते हैं ये झोंके ।
वही रात वही चांद वही चांदनी
मगर आंखें विरान सी है शायद
अब चांद दरारनुमा सा लगता है
चांदनी छिल देती है जिस्त को ।
ये राहों की आवारगी और
मंजिल का सफर तन्हा सा है
अब कंधे नाराज़ से हैं मेरे और
ये कदम ठहर से गए हैं शायद ।
ये वक्त जो रूकता ही नहीं कहीं,
मैं ठहरा हूँ आज भी उसी पल में
जहाँ छोड़ आया था तुझे एकदिन
इस वक्त के हाथों मज़बूर होकर ।
आरज़ू -ए-अर्जुन
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