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मैं अपनी बेग़म से, आज भी झगड़ पाता हूँ ...

आदाब

सभी बेचारे पतियों को...  हास्यरस पर..

मैं अपनी बेग़म से, आज भी झगड़ पाता हूँ
कमाल है पत्थर को,  सिर से रगड़ पाता हूँ

यकीनन  मुझपे  यकीं  करते  नहीं  हैं लोग
मैं  मौत  के  सामने,  कैसे अकड़  पाता  हूँ

घनीं  मंहगाई   में  एक  बेटा  ही  रक्खा  है
मेरे अरमानों को मुश्किल से जकड़ पाता हूँ

हुनर  से कवि  और  पेशे  से  अध्यापक हूँ
हैराँ  हैं सब कैसे  चार  पैसे पकड़ पाता हूँ

आज ला दूँगा,  कल ला दूँगा,  यार ला दूँगा
मिटाने को ख़ाहिशें वादों की रबड़ पाता हूँ

रूठी  हैं सब  दीवारें नशे  मन की  भी मेरी
रंगों  के  कुछ नगीनें  उसमें न जड़ पाता हूँ

किताबों में उलझ कर भगवान बिसर गया
बड़ी मुश्किल से मैं अब नाक रगड़ पाता हूँ

थामाँ   है  आरज़ू  को  शरीक-ए-हयात  ने
बेलगाम सा हूँ  ना खुद को  पकड़ पाता हूँ

आरज़ू -ए-अर्जुन

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Aaj ke yoga divas par meri ye rachna..          चलो योग करें एक  काम सभी  हम रोज़ करें योग   करें   चलो   योग   करें भारत  की  पहचान   है   यह वेद-पुराण  का  ग्यान  है  यह स्वस्थ   विश्व   कल्याण   हेतु जन जन का अभियान है यह सीखें    और     प्रयोग    करें योग   करें   चलो   योग   करें मन  को निर्मल  करता  है यह तन को  कोमल  करता है यह है  यह  उन्नति  का  मार्ग  भी सबको  चंचल  करता  है  यह बस  इसका  सद  उपयोग करें योग   करें   चलो    योग   करें पश्चिम   ने   अपनाया   इसको सबने   गले   लगाया    इसको रोग  दोष   से  पीड़ित  थे  जो राम  बाण  सा  बताया  इसको सादा    जीवन   उपभोग   करें योग   करे...

DIL TUMHARA JAB CHURAYA JAYEGA.. GHAZAL

आदाब दिल तुम्हारा जब चुराया जाएगा दोष तुमपर ही लगाया जाएगा इस मुहब्बत में फ़क़त पहले पहल तुमको पलकों पर बिठाया जाएगा तोल लेना पर को तुम अपने यहाँ तुमको ऊँचा भी उड़ाया जाएगा उड़ना लेकिन छोड़ मत देना ज़मीं तुमको नीचे भी गिराया जाएगा झांकना मत आंखों में वो फ़र्ज़ी है ख़ाब झूठा ही दिखाया जाएगा बढ़ रहे आहिस्ता से तुम मौत को यह नहीं तुमको बताया जाएगा है मुहब्बत खूबसूरत सी बला जाल में इसके फंसाया जाएगा प्यार में वादा करो पर सोच कर देखना, तुमसे निभाया जाएगा यह नहीं कहता मुहब्बत मत करो टूट कर क्या तुमसे चाहा जाएगा जो मुहब्बत पाक सी है 'आरज़ू' उसके आगे सर झुकाया जाएगा आरज़ू-ए-अर्जुन

बेटियों पे ग़ज़ल

ग़ज़ल दौलत नहीं,   ये अपना संसार  माँगती हैं ये बेटियाँ  तो हमसे,  बस प्यार माँगती हैं दरबार में ख़ुदा के जब  भी की हैं दुआएँ, माँ बाप की ही खुशियाँ हर बार माँगती हैं माँ  से दुलार, भाई से  प्यार  और रब  से अपने पिता की उजली  दस्तार माँगती हैं है दिल में कितने सागर,सीने पे कितने पर्बत धरती के जैसा अपना, किरदार माँगती हैं आज़ाद हम सभी हैं, हिन्दोस्ताँ में फिर भी, क्यों 'आरज़ू' ये अपना अधिकार माँगती हैं? आरज़ू