आदाब
2122.2122.212
ज़िंदगी के भार को ढ़ोता हुआ
चल रहा है आदमी रोता हुआ
तैरते हैं आंख में कुछ ख्वाब यूं
खेत जैसे आज हो जोता हुआ
रोज़ जाता ढूँढने को ज़िंदगी
लौट आता मौत से होता हुआ
रास्ते आसान ग़र होते यहाँ
तो खुशी को जीता यूं सोता हुआ
इस जहां की रौशनी में खुद को ही
देखता है भीड़ में खोता हुआ
दिख रहा है आज वो यूं हर जगा
आंसुओं से हसरतें धोता हुआ
हौसले को साथ लेकर 'आरज़ू '
चल रहा है ख्वाब भी बोता हुआ
आरज़ू -ए-अर्जुन
2122.2122.212
ज़िंदगी के भार को ढ़ोता हुआ
चल रहा है आदमी रोता हुआ
तैरते हैं आंख में कुछ ख्वाब यूं
खेत जैसे आज हो जोता हुआ
रोज़ जाता ढूँढने को ज़िंदगी
लौट आता मौत से होता हुआ
रास्ते आसान ग़र होते यहाँ
तो खुशी को जीता यूं सोता हुआ
इस जहां की रौशनी में खुद को ही
देखता है भीड़ में खोता हुआ
दिख रहा है आज वो यूं हर जगा
आंसुओं से हसरतें धोता हुआ
हौसले को साथ लेकर 'आरज़ू '
चल रहा है ख्वाब भी बोता हुआ
आरज़ू -ए-अर्जुन
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