आदाब
आप जबसे गैरों के सहारे हुए
लौट आते हैं महफ़िल से हारे हुए
आदतन देखते हैं तुम्हें आज भी
उम्र गुज़री है तुमको निहारे हुए
ज़िंदगी खूबसूरत सी लगने लगी
बाद मुद्दत के जब तुम हमारे हुए
जान कहकर बुलाया था तुमने कभी
आज अरसा हुआ वो पुकारे हुए
कर रहें हैं सफ़र हौसले से यहाँ
इस समंदर में कश्ती उतारे हुए
ज़िंदगी क्या से क्या बन गई दोस्तो
मुश्किलों से हमारे गुज़ारे हुए
ढूँढती फिर रही ये नज़र चार सू
दूर आंखों से क्यों ख़ाब सारे हुए
एक तू ही अकेला नही 'आरज़ू '
इस जहां में सभी ग़म के मारे हुए
आरज़ू -ए-अर्जुन
आप जबसे गैरों के सहारे हुए
लौट आते हैं महफ़िल से हारे हुए
आदतन देखते हैं तुम्हें आज भी
उम्र गुज़री है तुमको निहारे हुए
ज़िंदगी खूबसूरत सी लगने लगी
बाद मुद्दत के जब तुम हमारे हुए
जान कहकर बुलाया था तुमने कभी
आज अरसा हुआ वो पुकारे हुए
कर रहें हैं सफ़र हौसले से यहाँ
इस समंदर में कश्ती उतारे हुए
ज़िंदगी क्या से क्या बन गई दोस्तो
मुश्किलों से हमारे गुज़ारे हुए
ढूँढती फिर रही ये नज़र चार सू
दूर आंखों से क्यों ख़ाब सारे हुए
एक तू ही अकेला नही 'आरज़ू '
इस जहां में सभी ग़म के मारे हुए
आरज़ू -ए-अर्जुन
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