आदाब
1222.1222.122
सभी के काम आना चाहता हूँ
गले सबको लगाना चाहता हूँ
छलकती आंख हर ग़म से जुदा हो
सभी को यूं हसाना चाहता हूँ
कितीबें ही किताबें हों ज़मीं पे
फसल ऐसी उगाना चाहता हूँ
खिज़ा को भी मुअत्तर यार करदे
कली ऐसी खिलाना चाहता हूँ
वफ़ा की धूप लाये जो शहर में
मैं वो सूरज उगाना चाहता हूँ
जहाँ पे मौत होती भुखमरी से
वहाँ चूल्हे जलाना चाहता हूँ
तसव्वुर जब मेरा हो खिल उठें दिल
मैं ऐसे याद आना चाहता हूँ
सुकूँ गीतों में मेरे 'आरज़ू ' हो
ग़ज़ल में मुस्कुराना चाहता हूँ
आरज़ू -ए-अर्जुन
1222.1222.122
सभी के काम आना चाहता हूँ
गले सबको लगाना चाहता हूँ
छलकती आंख हर ग़म से जुदा हो
सभी को यूं हसाना चाहता हूँ
कितीबें ही किताबें हों ज़मीं पे
फसल ऐसी उगाना चाहता हूँ
खिज़ा को भी मुअत्तर यार करदे
कली ऐसी खिलाना चाहता हूँ
वफ़ा की धूप लाये जो शहर में
मैं वो सूरज उगाना चाहता हूँ
जहाँ पे मौत होती भुखमरी से
वहाँ चूल्हे जलाना चाहता हूँ
तसव्वुर जब मेरा हो खिल उठें दिल
मैं ऐसे याद आना चाहता हूँ
सुकूँ गीतों में मेरे 'आरज़ू ' हो
ग़ज़ल में मुस्कुराना चाहता हूँ
आरज़ू -ए-अर्जुन
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