आदाब
याद उसकी सताती रही रात भर
चाँदनी भी जलाती रही रात भर
रौशनी चाहती थी बिख़र जाऊँ मैं
तीरगी आज़माती रही रात भर
पास अपने बिठा कर मेरी बेबसी
धुन कोई गुनगुनाती रही रात भर
दोस्ती शब से की थी सुकूँ के लिए
दर्द अपने सुनाती रही रात भर
आग सीने लगा कर मेरी हमनशीं
बिजलियाँ सी गिराती रही रात भर
दासतान-ए-सुनाकर हसी वो कभी
आँख भी डबडबाती रही रात भर
फुरकतों से कहा मौत दे दो मुझे
पर सितम मुझपे ढ़ाती रही रात भर
हम जुदा क्यों हुए इस तरह 'आरज़ू '
सोच गोते लगाती रही रात भर
आरज़ू -ए-अर्जुन
याद उसकी सताती रही रात भर
चाँदनी भी जलाती रही रात भर
रौशनी चाहती थी बिख़र जाऊँ मैं
तीरगी आज़माती रही रात भर
पास अपने बिठा कर मेरी बेबसी
धुन कोई गुनगुनाती रही रात भर
दोस्ती शब से की थी सुकूँ के लिए
दर्द अपने सुनाती रही रात भर
आग सीने लगा कर मेरी हमनशीं
बिजलियाँ सी गिराती रही रात भर
दासतान-ए-सुनाकर हसी वो कभी
आँख भी डबडबाती रही रात भर
फुरकतों से कहा मौत दे दो मुझे
पर सितम मुझपे ढ़ाती रही रात भर
हम जुदा क्यों हुए इस तरह 'आरज़ू '
सोच गोते लगाती रही रात भर
आरज़ू -ए-अर्जुन
Comments
Post a Comment