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ज़िंदगी को यूं ज़हर मानते क्यों यार यहाँ . ग़ज़ल

आदाब
2122 1122 1122 22/112

प्यार दिल से वो जतायें तो कोई बात बने
बात दिल की न छुपायें तो कोई बात बने

मैकशी यार  कभी  आई  नहीं  रास  मुझे
वो  निगाहों से  पिलायें तो कोई बात बने

ज़िंदगी को यूं ज़हर मानते क्यों यार यहाँ
विष को होटों से लगायें तो कोई बात बने

मौजूदा हालत पे  रोते  हैं  कितना ही हम
देश मिलके जो चलायें  तो कोई बात बने

बस अमीरों की निभाते हैं  यहां यारी हम
मुफलिसों की भी निभायें तो कोई बात बने

राहबर आज बने फिरते हैं कितने ही यहाँ
ज़िंदगी जीना सिखायें  तो कोई  बात बने

तीरगी  फैल  रही   है  यूं   दिलों  में  यारो
रौशनी ईल्म की लायें  तो  कोई  बात बने

'आरज़ू 'चाहता है भूख से कोई ना बिलखे
हम  कदम मिल के बढ़ायें तो कोई बात बने

आरज़ू -ए-अर्जुन

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