आदाब
कैसे मैं कहूँ तुमसे क्यों यार नहीं आता
मज़दूर की बस्ती में इतवार नहीं आता
चेहरे पे सजाते हो मुस्कान कहाँ से तुम
मुझको भी सिखा दो ये, किरदार नहीं आता
फूलों की अहमियत को समझोगे भला कैसे
हाथों में तेरे जब तक वो ख़ार नहीं आता
जो दर्द दिया तुमने मंजूर किया मैने
किस्मत में फकीरों की, इंकार नहीं आता
जीना ही सिखाती है तकलीफ मुकद्दर की
शिकवा न करो यह गम बेकार नहीं आता
सागर की हकीकत से वाकिफ ही नहीं होते,
लहरों में उफ़नता गर मझधार नहीं आता
होती न ज़रूरत ग़र, रोटी की यहाँ अर्जुन
तो जान तली पे रख फनकार नहीं आता
आरज़ू -ए-अर्जुन
कैसे मैं कहूँ तुमसे क्यों यार नहीं आता
मज़दूर की बस्ती में इतवार नहीं आता
चेहरे पे सजाते हो मुस्कान कहाँ से तुम
मुझको भी सिखा दो ये, किरदार नहीं आता
फूलों की अहमियत को समझोगे भला कैसे
हाथों में तेरे जब तक वो ख़ार नहीं आता
जो दर्द दिया तुमने मंजूर किया मैने
किस्मत में फकीरों की, इंकार नहीं आता
जीना ही सिखाती है तकलीफ मुकद्दर की
शिकवा न करो यह गम बेकार नहीं आता
सागर की हकीकत से वाकिफ ही नहीं होते,
लहरों में उफ़नता गर मझधार नहीं आता
होती न ज़रूरत ग़र, रोटी की यहाँ अर्जुन
तो जान तली पे रख फनकार नहीं आता
आरज़ू -ए-अर्जुन
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