आदाब
221.2121.1221.212
पहचान क्यों अलग सी है सारे जहान में
सब सोचते ऐसा है क्या हिन्दोस्तान में
है सभ्यता की मूल, ये हिन्दोस्तां मेरा
सबको मिठास मिलती हमारी ज़ुबान में
कल चांद को छुआ था यूं मंगल पे भी गए
हैं बुलंदियाँ बड़ी ही, हमारी उड़ान में
हर रूप में हैं पूजते नारी को हम यहाँ
तुमको खुदा मिलेंगे हमारे ईमान में
खुशबू उड़े हवा में सुबह-शाम पाक सी
गीता सुनाई देती यहाँ पर कुरान में
यूँ लांघना कठिन है फसीलों को भी यहाँ
फौलाद भर दिया है यहाँ हर जवान में
है केसरी, सफेद, हरे रंग से बना
ऊँचा रहे तिरंगा सदा आसमान में
बस खुशनसीब लिपटें तिरंगे में 'आरज़ू '
कर जाते नाम भी अमर दोनों जहान में
आरज़ू -ए-अर्जुन
221.2121.1221.212
पहचान क्यों अलग सी है सारे जहान में
सब सोचते ऐसा है क्या हिन्दोस्तान में
है सभ्यता की मूल, ये हिन्दोस्तां मेरा
सबको मिठास मिलती हमारी ज़ुबान में
कल चांद को छुआ था यूं मंगल पे भी गए
हैं बुलंदियाँ बड़ी ही, हमारी उड़ान में
हर रूप में हैं पूजते नारी को हम यहाँ
तुमको खुदा मिलेंगे हमारे ईमान में
खुशबू उड़े हवा में सुबह-शाम पाक सी
गीता सुनाई देती यहाँ पर कुरान में
यूँ लांघना कठिन है फसीलों को भी यहाँ
फौलाद भर दिया है यहाँ हर जवान में
है केसरी, सफेद, हरे रंग से बना
ऊँचा रहे तिरंगा सदा आसमान में
बस खुशनसीब लिपटें तिरंगे में 'आरज़ू '
कर जाते नाम भी अमर दोनों जहान में
आरज़ू -ए-अर्जुन
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