आदाब हाज़रीन
मेरे हर काफिले में भी बनी है दोस्त तन्हाई
जहाँ तक चल सका था मैं, मेरे पीछे चली आई
बिना मकसद यहाँ पर क्यों जिया सा जा रहा था मैं
मैं ज़िंदा था मगर कैसे समझ यह बात ना आई..
हिज़र की लाश सेकी है यहाँ हर रात मैने भी
किया तौबा मुहब्बत से मुझे तो रास ना आई
कभी मंदिर कभी मस्जिद गया था सिर छुपाने मैं
निकाला हर जगह मुझको, नही थी हाथ में पाई
मिसाल-ए-ताज देकर तो मेरी बीवी सताती है
मुसीबत आशिक़ों की यह शहंशाह ने है बनवाई
हमेशा गौर करना तुम हुई गलती पे हर अपनी
बशर इसकी नसीहत में बड़ी होती है गहराई
रहो तैयार दुनियां में किसी भी आपदा से तुम
नहीं तो ज़िन्दगी तेरी बनेगी एक तमाशाई
मेरे ग़म भी सुनाते हैं, मुझे धुन 'आरज़ू' ऐसी
बजाते हों खुशी के यूं, मेरे कानों में शहनाई
आरज़ू -ए-अर्जुन
मेरे हर काफिले में भी बनी है दोस्त तन्हाई
जहाँ तक चल सका था मैं, मेरे पीछे चली आई
बिना मकसद यहाँ पर क्यों जिया सा जा रहा था मैं
मैं ज़िंदा था मगर कैसे समझ यह बात ना आई..
हिज़र की लाश सेकी है यहाँ हर रात मैने भी
किया तौबा मुहब्बत से मुझे तो रास ना आई
कभी मंदिर कभी मस्जिद गया था सिर छुपाने मैं
निकाला हर जगह मुझको, नही थी हाथ में पाई
मिसाल-ए-ताज देकर तो मेरी बीवी सताती है
मुसीबत आशिक़ों की यह शहंशाह ने है बनवाई
हमेशा गौर करना तुम हुई गलती पे हर अपनी
बशर इसकी नसीहत में बड़ी होती है गहराई
रहो तैयार दुनियां में किसी भी आपदा से तुम
नहीं तो ज़िन्दगी तेरी बनेगी एक तमाशाई
मेरे ग़म भी सुनाते हैं, मुझे धुन 'आरज़ू' ऐसी
बजाते हों खुशी के यूं, मेरे कानों में शहनाई
आरज़ू -ए-अर्जुन
Comments
Post a Comment