आदाब
अभी यह वक्त को बतला रहा हूँ
मैं उल्झी ज़िंदगी सुलझा रहा हूँ
मेरी राहें नहीं आसान हैं अब
यहाँ हर ख़ार को अपना रहा हूँ
कभी आंधी कभी तूफां को झेला
मगर आगे मैं बढ़ता जा रहा हूँ
जहाँ पर गिर रही थी बिजलियाँ भी
वहीं पे आशियां बुनता रहा हूँ
यहाँ जो तलखियां देते थे मुझको
उन्हीं को आईना करता रहा हूँ
चलाया तीर जिसने दिल पे मेरे
उसी के वास्ते मरता रहा हूँ
यकीं कैसे करूँ यारों पे अब मैं
यहाँ धोखे बहुत खाता रहा हूँ
यहाँ पर धूप में रोटी की ख़ातिर
सुबह से शाम जलता जा रहा हूँ
मुझे कुंदन अभी तुम कह रहे हो
मैं बरसों आग में तपता रहा हूँ
नहीं मैं सीख पाया दिल का सौदा
तभी तो 'आरज़ू ' छलता रहा हूँ
आरज़ू -ए-अर्जुन
अभी यह वक्त को बतला रहा हूँ
मैं उल्झी ज़िंदगी सुलझा रहा हूँ
मेरी राहें नहीं आसान हैं अब
यहाँ हर ख़ार को अपना रहा हूँ
कभी आंधी कभी तूफां को झेला
मगर आगे मैं बढ़ता जा रहा हूँ
जहाँ पर गिर रही थी बिजलियाँ भी
वहीं पे आशियां बुनता रहा हूँ
यहाँ जो तलखियां देते थे मुझको
उन्हीं को आईना करता रहा हूँ
चलाया तीर जिसने दिल पे मेरे
उसी के वास्ते मरता रहा हूँ
यकीं कैसे करूँ यारों पे अब मैं
यहाँ धोखे बहुत खाता रहा हूँ
यहाँ पर धूप में रोटी की ख़ातिर
सुबह से शाम जलता जा रहा हूँ
मुझे कुंदन अभी तुम कह रहे हो
मैं बरसों आग में तपता रहा हूँ
नहीं मैं सीख पाया दिल का सौदा
तभी तो 'आरज़ू ' छलता रहा हूँ
आरज़ू -ए-अर्जुन
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