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कितनी शामें गुजरी थी तेरी यादों में ( ghazal )

ग़ज़ल 

मात्रा : 222  222  222  222
काफ़िया : तेरी यादों  ( ओं  स्वर ), रदीफ़  ( में )

कितनी  शामें गुजरी थी तेरी यादों में
कितना पागल था ये दिल तेरी बातों में

हर लम्हा चाहा तुझको तेरी पूजा की
मिलती थी तेरी खुशबू मेरी सांसों में

तुझको देखा हरसू मैंने दिन में भी
तुमही होते थे बस अन्धेरी रातों में

तुमने देखा ही कब था मन की नज़रों से
कितनी चाहत होती थी मेरी आँखों में

नीलाम हुये तो जाना बेदर्दी तुझको
बेमतलब थे लुटते हम तेरी बातों में

रोज़ नहीं तो एकबार कहा होता 'अर्जुन'
हस के जान लुटा देते तेरी बाहों में

आरज़ू-ए-अर्जुन 

  

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