हमें मंजिल बुलाती है
चलो फिर से चलें यारो
हमें राहें बुलाती है
अभी करना है कुछ हासिल
हमें मंजिल बुलाती है
अभी मंजिल है कितनी दूर
चलता चल मुसाफिर तू
न जानें फ़लसफ़े कैसे
हमें राहें दिखाती है
कभी आँखें न झपकाना
निगाहें हों निशाने पर
ज़रा सी भूल आँखों की
हमें कितना रुलाती है
न डरना रात से यारो
न दिन की ही फिकर करना
कदम चलते नहीं ऐसे
हमें हिम्मत चलाती है
कभी रुखी मिलेगी तो
कभी वो भी मना होगा
न रुकना सोच के यारो
हमें रोटी सताती है
बशर मरने से पहले तुम
कहीं ऐसे न मर जाना
लहू का गर्म कतरा भी
हमें ज़िंदा बताती है
कई वादे किये तुमने
कई रिश्ते निभाने हैं
न छूटे फ़र्ज़ कोई तो
ज़िंदगी मुस्कुराती है
उसे कह दो वफ़ा है तो
मेरा ऐतबार कर लेना
मैं आऊंगा तुझे मिलने
अभी उलझन सताती है
न जाने कौन सा लम्हा
हमारा आखरी होगा
हमारी ज़िंदगी हमको
यहाँ लड़ना सिखाती है
दिवाने आरज़ू को तो
नशा मंजिल को पाने का
मेरी हर साँस को यारो
मेरी मंजिल बुलाती है
आरज़ू-ए-अर्जुन
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