" बस ऐसे ही चलते चलो "
इस पेड़ के नीचे रुके हो....
तुम्हें क्या लगता है ऐसा करके
तुम बूँदों से बच जाओगे,
ऊपर देखो !
पीपल के पत्तों से छन कर ये बूँदें
तेरे चेहरे पे टिप टिप करती
तेरे होटों तक आ गईं हैं।
मत पोंछो रुमाल से इसे,
महसूस तो करो इनकी ठंडक को
तुम्हारी तरह ये भी बहुत प्यासी हैं।
याद है...
आख़िरी बार कब मिले थे हम।
हाँ... दिसंबर में...
क्रिसमस का आखिरी दिन था वो
और आज पूरे छे महीने बाद मैं आई हूँ।
मुझे अपने गले से लगा लो
मुझे अपने रोम रोम में समा लो
तू सांवरा है तो मैं सावन हूँ
तू बाँवरा है तो मैं यौवन हूँ
यह काम की मज़बूरी
मैं आज नहीं सुनूँगी।
मैं आज तेरे पास हूँ तेरे साथ हूँ
कल क्या पता तू कहाँ .. मैं कहाँ।
चलो न... मेरे साथ कुछ दूर तक
यूँ ही भीगते हुए.. पैदल,
चलो ना...यूँ ही हाथों में हाथ डाले
सर से पाँव तक भीगे हुए,
दूर तक.... चलते चलो न....
चलते चलो न.... बस चलते चलो न......
आरज़ू-ए-अर्जुन
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