" फिर से आओगे तुम "
फिज़ायें खुशनुमा सी है
हवायें रवां रवां सी है
बडी सौंधी खुशबू है मिट्टी की..
फूलों के रुखसार पे शबनमी
बूंदें भी है, हवा में एक भीनी सी..
खुशबू और दूर तक घाटियों में
गूंजती, लहराती तेरी यादों की सदा..
तुम पास तो नहीं मगर साथ हो।
यह पेड़, सब्ज़, बेल, बूटे हर जगह..
मय्यसर से हो तुम...
ये परिंदे ये चरिंदे हर किसी में आज
तेरी धड़कनें महसूस करते है
तुम बोलते हो इनमें हर जगह....
ये पत्थर ये चट्टानें आज मुझे देख कर
मुस्कुरा रहे हैं.....
मुझे वो लम्हें याद आ रहे हैं...
जो गुजरे थे इन्हीं की पनाहों में...
लब-ए-साकित सराब-ए-हर्फ़ सा अब
बस तलाशती रहती है उन अल्फ़ाज़ों को
जिनको मेरे कान सुनने के आदी थे
जिनको ये लब दोहराने को बेकल थे
करिश्मात-ए-तसव्वुर यकीन-ए-कामिल
है कि तुम फिर से आओगे ... तुम.....
फिर से आओगे... हाँ। ... फिर से आओगे
फ़लक से लौटकर।
आरज़ू-ए-अर्जुन
फिज़ायें खुशनुमा सी है
हवायें रवां रवां सी है
बडी सौंधी खुशबू है मिट्टी की..
फूलों के रुखसार पे शबनमी
बूंदें भी है, हवा में एक भीनी सी..
खुशबू और दूर तक घाटियों में
गूंजती, लहराती तेरी यादों की सदा..
तुम पास तो नहीं मगर साथ हो।
यह पेड़, सब्ज़, बेल, बूटे हर जगह..
मय्यसर से हो तुम...
ये परिंदे ये चरिंदे हर किसी में आज
तेरी धड़कनें महसूस करते है
तुम बोलते हो इनमें हर जगह....
ये पत्थर ये चट्टानें आज मुझे देख कर
मुस्कुरा रहे हैं.....
मुझे वो लम्हें याद आ रहे हैं...
जो गुजरे थे इन्हीं की पनाहों में...
लब-ए-साकित सराब-ए-हर्फ़ सा अब
बस तलाशती रहती है उन अल्फ़ाज़ों को
जिनको मेरे कान सुनने के आदी थे
जिनको ये लब दोहराने को बेकल थे
करिश्मात-ए-तसव्वुर यकीन-ए-कामिल
है कि तुम फिर से आओगे ... तुम.....
फिर से आओगे... हाँ। ... फिर से आओगे
फ़लक से लौटकर।
आरज़ू-ए-अर्जुन
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