ग़ज़ल
मात्रा 122 122 122 122
वही रात ठहरी हुई है नज़र में
वही आग सुलगी हुई है जिगर में
बहुत कोशिशें की सभी को पुकारा
नहीं आज कोई है दिल की डगर में
किसे हाल दिल का सुनाऊँ यहाँ पे
सभी अजनबी हो गये हैं शहर में
मुझे राह मिलती नहीं आज कोई
कहीं खो न जाऊँ इस तन्हा सफ़र में
मेरी हर तमन्ना बिखर सी गई है
नई आस होती है हर एक पहर में
मेरी आँख रोती नहीं रात में भी
मगर नम सी रहने लगी है सहर में
मुझे याद है होश खोने से पहले
ज़रा सी कमीं थी तुम्हारे ज़हर में
कहाँ मौत ने आरज़ू को है मारा
बहुत झूठ लिखते हैं वो हर ख़बर में
आरज़ू-ए-अर्जुन
मात्रा 122 122 122 122
वही रात ठहरी हुई है नज़र में
वही आग सुलगी हुई है जिगर में
बहुत कोशिशें की सभी को पुकारा
नहीं आज कोई है दिल की डगर में
किसे हाल दिल का सुनाऊँ यहाँ पे
सभी अजनबी हो गये हैं शहर में
मुझे राह मिलती नहीं आज कोई
कहीं खो न जाऊँ इस तन्हा सफ़र में
मेरी हर तमन्ना बिखर सी गई है
नई आस होती है हर एक पहर में
मेरी आँख रोती नहीं रात में भी
मगर नम सी रहने लगी है सहर में
मुझे याद है होश खोने से पहले
ज़रा सी कमीं थी तुम्हारे ज़हर में
कहाँ मौत ने आरज़ू को है मारा
बहुत झूठ लिखते हैं वो हर ख़बर में
आरज़ू-ए-अर्जुन
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