ग़ज़ल
मात्रा : 122 122 122 122 ( फऊलुन )
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हमें दिल से अपने भुलाया उसी ने
हमारे खतों को जलाया उसी ने
हमारे लबों पे हसी को खिलाकर
है ख़ामोश रहना सिखाया उसी ने
नहीं जी सकेंगें हमारे बिना वो
मगर सच ये करके दिखाया उसी ने
समझते रहे थे उसे ढाल अपनी
मगर तीर मुझपे चलाया उसी ने
अभी ख़ाक सा हूँ उसी की बदौलत
खुदा भी हमीं को बनाया उसी ने
किये शौंक पूरे अमीरी से मेरे
हमीं को भिखारी बनाया उसी ने
अभी चार पैसे जो आये तो देखो
हमें फिर से मिलने बुलाया उसी ने
है उससे शिकायत नहीं आरज़ू अब
हमें सच को जीना सिखाया उसी ने
आरज़ू-ए-अर्जुन
मात्रा : 122 122 122 122 ( फऊलुन )
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हमें दिल से अपने भुलाया उसी ने
हमारे खतों को जलाया उसी ने
हमारे लबों पे हसी को खिलाकर
है ख़ामोश रहना सिखाया उसी ने
नहीं जी सकेंगें हमारे बिना वो
मगर सच ये करके दिखाया उसी ने
समझते रहे थे उसे ढाल अपनी
मगर तीर मुझपे चलाया उसी ने
अभी ख़ाक सा हूँ उसी की बदौलत
खुदा भी हमीं को बनाया उसी ने
किये शौंक पूरे अमीरी से मेरे
हमीं को भिखारी बनाया उसी ने
अभी चार पैसे जो आये तो देखो
हमें फिर से मिलने बुलाया उसी ने
है उससे शिकायत नहीं आरज़ू अब
हमें सच को जीना सिखाया उसी ने
आरज़ू-ए-अर्जुन
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