गीत
पाखी पाखी उड़ता सा
दूर गगन में यह दिल मेरा
ख्वाबों के पंखों से होती है परवाज़े
दिल की हर धड़कन से होती है आवाज़े
जाने क्या मन मेरा कहता है अब मुझसे
शाम ढलने सी लगी है
घबराये क्यों यह मन मेरा
पाखी पाखी उड़ता सा
दूर गगन में यह दिल मेरा
रातों को पलकों पे रहती है बेचैनी
आँखों में जाने क्यों होती है बेताबी
वो क्या है जो बहती रहती है सांसों में
तेरी खुशबू आने लगी है
सुलग रहा है यह तन मेरा
पाखी पाखी उड़ता सा
दूर गगन में यह दिल मेरा
आहिस्ता आहिस्ता बढ़ने लगी सरगोशी
आहिस्ता आहिस्ता बढ़ने लगी मदहोशी
आ भी जा आ भी जा आ भी जा जाने जाँ
जान जाने सी लगी है
क्या जायेगा जानम तेरा
पाखी पाखी उड़ता सा
पाखी पाखी उड़ता सा
आहिस्ता आहिस्ता बढ़ने लगी मदहोशी
आ भी जा आ भी जा आ भी जा जाने जाँ
जान जाने सी लगी है
क्या जायेगा जानम तेरा
पाखी पाखी उड़ता सा
दूर गगन में यह दिल मेरा
दूर गगन में यह दिल मेरा।
आरज़ू-ए-अर्जुन
पाखी = परिंदा , सरगोशी = दबी दबी आवाज़े
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