( क्या रह गया है बाकी)
क्या रह गया है बाकी मेरी इस ज़िंदगी में
सबकुछ फ़ना हुआ है मेरी इस आशिक़ी में
महफ़िल में हम रहे हैं जलती शमा से बनकर
जलते रहे हैं अब तक अपनी ही रौशनी में
होटों को सी लिया है खुशियों का क़र्ज़ लेकर
लाखों ही ग़म दिए हैं मुझे मेरी हर ख़ुशी ने
ख्वाबों को क्या सजाऊँ अभी फुर्सत ही नहीं है
टूटे सपने चुन रहा हूँ मैं अपनी ज़िंदगी में
मैं चलता रहा राहों पे मंजिल का था बहाना
खुद को ही खो दिया है मंजिल की दिल्लगी में
खुद को भी भूल जाऊँ आँखों को क्या कहूँ मैं
कहता है के जानता हूँ तुम्हे देखा है कहीं पे
जीता हूँ इस कदर मैं मरने की आस लेकर
ज़िंदा रहा हूँ अब तक कितनी ही खुदखुशी में
किसे कह सकूँ मैं अपना ए आरज़ू इस जहां में
यह जिस्म भी नहीं अपना मिलना पड़े जमीं में
आरज़ू-ए-अर्जुन
क्या रह गया है बाकी मेरी इस ज़िंदगी में
सबकुछ फ़ना हुआ है मेरी इस आशिक़ी में
महफ़िल में हम रहे हैं जलती शमा से बनकर
जलते रहे हैं अब तक अपनी ही रौशनी में
होटों को सी लिया है खुशियों का क़र्ज़ लेकर
लाखों ही ग़म दिए हैं मुझे मेरी हर ख़ुशी ने
ख्वाबों को क्या सजाऊँ अभी फुर्सत ही नहीं है
टूटे सपने चुन रहा हूँ मैं अपनी ज़िंदगी में
मैं चलता रहा राहों पे मंजिल का था बहाना
खुद को ही खो दिया है मंजिल की दिल्लगी में
खुद को भी भूल जाऊँ आँखों को क्या कहूँ मैं
कहता है के जानता हूँ तुम्हे देखा है कहीं पे
जीता हूँ इस कदर मैं मरने की आस लेकर
ज़िंदा रहा हूँ अब तक कितनी ही खुदखुशी में
किसे कह सकूँ मैं अपना ए आरज़ू इस जहां में
यह जिस्म भी नहीं अपना मिलना पड़े जमीं में
आरज़ू-ए-अर्जुन
Comments
Post a Comment