"ऐसी होती है हसी " अठखेलिओं से भरी, बेपरवाह, अल्हड़, बेमतलब सी खिलखिलाती, दिल और दिमाग की गहराइयों से बेमुख, जो किसी को भी हँसा दे, जो किसी की भी परेशानी मिटा दे ऐसी होती है लड़कपन की हसी, बचपन की मुस्कान। ज़िंदगी की डगर पर ज़िम्मेदारी के सफर पर, खुदी में मुस्कुराती, खुदी से बतियाती, खुदी को खामोश करती खुदी को हसना सिखाती लबों की जगह आँखों से मुस्कुराती ऐसी होती है जवानी की हसी जवानी की मुस्कान। मंजिल पे पहुंच कर यां मंजिल से बिछड़ कर ज़िंदगी से दो चार होती हुई ज़िंदगी से लाचार होती हुई गुमें हुए यादो के सहारे छूपे हुए ख़्वाबों के सहारे कुर्सी पे बैठ अख़बार के सहारे पीरी तलाशती है कुछ हसी ऐसी होती है पीरी की हसी पीरी की मुस्कान। आरज़ू-ए-अर्जुन
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