"अच्छा लगता है "
बहुत अच्छा लगता है जब कोई मज़दूर
अपनी मज़दूरी को हाथ में लेकर
अपने माथे को सुकून से पौंछता है
और दिल में सबर सबूरी ढूँढ लेता है
फिर जब मुस्कुरा कर घर चल देता है
वो मुस्कराहट देख कर मुझे,
अच्छा लगता है, बहुत अच्छा लगता है
अपने अरमानो को दिल में छुपा कर
अपनी उम्र को आस की भट्टी में जला कर
जब वो अपने बच्चे को पढ़ने भेजते है
उनकी आस को जब बच्चा परवाज़ देता है
तो ख़ुशी से छलकी माँ-बाप की आँखों को देख
मुझे, अच्छा लगता है, बहुत अच्छा लगता है
पिता की ऊँगली थाम जब बच्चा मेले जाता है
खुशियों से भरे हर कोने को आँखों समाता है
फिर, किसी खिलौने को देख चुपके से ठहर जाता है
फिर, पिता को चुप देख कर
" अच्छा नहीं है खिलौना" कहता है तो
सचमे,अच्छा लगता है, बहुत अच्छा लगता है
क़र्ज़ से भीगी पगड़ी को पहन कोई
चिलचिलाती धूप में उम्मीद लिए हल चलाता है
शाम को खेत किनारे बैठ कहीं खो जाता है
और कांपते पैरों से घर जाते जाते जाने कैसे
चेहरे पे ख़ुशी ले आता है, वो झूठी ख़ुशी
देखकर अच्छा लगता है, बहुत अच्छा लगता है
सरहद पर चट्टान सा खड़ा जब वो
कड़कती धूप कड़कती ठंड को सहता है
ज़िंदगी और मौत के बीच डटा रहता है
उस हिम्मत को कोई सराहे न सराहे
जब उसकी बेटी उसे हीरो कह कर बुलाती है
तो वो तना हुआ सीना देखकर
अच्छा लगता है, बहुत अच्छा लगता है
अपनी मिट्टी से दूर अंजान देश में
अपने परिधान को समेट बेगाने भेस में
अपनी मेहनत से उस देश को सजाता है
तो उसके सम्मान में जब कोई विदेशी खुद
तिरंगा फहराता है तो लहराते तिरंगे के
सम्मान में खड़े विदेशियों को देख
अच्छा लगता है, बहुत अच्छा लगता है
आरज़ू-ए-अर्जुन
बहुत अच्छा लगता है जब कोई मज़दूर
अपनी मज़दूरी को हाथ में लेकर
अपने माथे को सुकून से पौंछता है
और दिल में सबर सबूरी ढूँढ लेता है
फिर जब मुस्कुरा कर घर चल देता है
वो मुस्कराहट देख कर मुझे,
अच्छा लगता है, बहुत अच्छा लगता है
अपने अरमानो को दिल में छुपा कर
अपनी उम्र को आस की भट्टी में जला कर
जब वो अपने बच्चे को पढ़ने भेजते है
उनकी आस को जब बच्चा परवाज़ देता है
तो ख़ुशी से छलकी माँ-बाप की आँखों को देख
मुझे, अच्छा लगता है, बहुत अच्छा लगता है
पिता की ऊँगली थाम जब बच्चा मेले जाता है
खुशियों से भरे हर कोने को आँखों समाता है
फिर, किसी खिलौने को देख चुपके से ठहर जाता है
फिर, पिता को चुप देख कर
" अच्छा नहीं है खिलौना" कहता है तो
सचमे,अच्छा लगता है, बहुत अच्छा लगता है
क़र्ज़ से भीगी पगड़ी को पहन कोई
चिलचिलाती धूप में उम्मीद लिए हल चलाता है
शाम को खेत किनारे बैठ कहीं खो जाता है
और कांपते पैरों से घर जाते जाते जाने कैसे
चेहरे पे ख़ुशी ले आता है, वो झूठी ख़ुशी
देखकर अच्छा लगता है, बहुत अच्छा लगता है
सरहद पर चट्टान सा खड़ा जब वो
कड़कती धूप कड़कती ठंड को सहता है
ज़िंदगी और मौत के बीच डटा रहता है
उस हिम्मत को कोई सराहे न सराहे
जब उसकी बेटी उसे हीरो कह कर बुलाती है
तो वो तना हुआ सीना देखकर
अच्छा लगता है, बहुत अच्छा लगता है
अपनी मिट्टी से दूर अंजान देश में
अपने परिधान को समेट बेगाने भेस में
अपनी मेहनत से उस देश को सजाता है
तो उसके सम्मान में जब कोई विदेशी खुद
तिरंगा फहराता है तो लहराते तिरंगे के
सम्मान में खड़े विदेशियों को देख
अच्छा लगता है, बहुत अच्छा लगता है
आरज़ू-ए-अर्जुन
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