" मैं काफ़िर हूँ "
मज़हब की इस दुनिया में
सब धर्मों के लोग मिले
मैं अंजाना पहचानू न
ये मजहब और जो लोग मिले
मैं देखूं जहाँ भी ये मौला
तेरा नूर इंसां इंसा में मिले
मैं दीन धर्म को जानूँ न
मैं मजहब को पह्चानूं न
मैं कौन हूँ मौला ये तो बता
तेरे नूर ने सब को रौशन किया
तेरी चौखट पे मैं हाज़िर हूँ
वो कहते है मैं काफ़िर हूँ
है रंग लहू का लाल मेरा
क्या उनका लहू है लाल नहीं
मैं पहली बार माँ बोला था
वो हिन्दू मुसलमा बोले कहीं
इस पानी को रोक सकेगा कोई
सागर से मिलने जाने को
इस हवा को टॉक सकेगा कोई
सांसो में घुलने जाने को
ये खुशबू सीना तान खड़ी
हर गुलशन ये महकाने को
तेरी चौखट पे मैं हाज़िर हूँ
वो कहते है मैं काफ़िर हूँ
हम एक मालिक के बन्दे है
इस दीन धर्म से बांटों न तुम
हम इन्सां है इस बगिया के
नफरत की धार से काटो न तुम
ये धर्म ज़हर अब बन बैठा
ये विष का प्याला चाटो न तुम
ये जीवन मिला तो कर्म कमा
यूँ नफरत को गांठो न तुम
अमन की राह मुश्किल तो नहीं
धर्म की चादर से ढांपो न तुम
तेरी चौखट पे मैं हाज़िर हूँ
वो कहते है मैं काफ़िर हूँ
हर इन्सां का है फ़र्ज़ यही
इन्सां इन्सां से प्यार करे
हर धर्म का बंदा भाई है
क्यों भाई भाई से जा लड़े
इस धरती माँ ने है पाला
क्यों आँचल इसका तार करें
मालिक ने बख्शी एक धरा
क्यों टुकड़े इसके हज़ार करें
इन्सां बनके धरती आये
उसका सजदा सो बार करें
तेरी चौखट पे मैं हाज़िर हूँ
वो कहते है मैं काफ़िर हूँ
आरज़ू-ए-अर्जुन
मज़हब की इस दुनिया में
सब धर्मों के लोग मिले
मैं अंजाना पहचानू न
ये मजहब और जो लोग मिले
मैं देखूं जहाँ भी ये मौला
तेरा नूर इंसां इंसा में मिले
मैं दीन धर्म को जानूँ न
मैं मजहब को पह्चानूं न
मैं कौन हूँ मौला ये तो बता
तेरे नूर ने सब को रौशन किया
तेरी चौखट पे मैं हाज़िर हूँ
वो कहते है मैं काफ़िर हूँ
है रंग लहू का लाल मेरा
क्या उनका लहू है लाल नहीं
मैं पहली बार माँ बोला था
वो हिन्दू मुसलमा बोले कहीं
इस पानी को रोक सकेगा कोई
सागर से मिलने जाने को
इस हवा को टॉक सकेगा कोई
सांसो में घुलने जाने को
ये खुशबू सीना तान खड़ी
हर गुलशन ये महकाने को
तेरी चौखट पे मैं हाज़िर हूँ
वो कहते है मैं काफ़िर हूँ
हम एक मालिक के बन्दे है
इस दीन धर्म से बांटों न तुम
हम इन्सां है इस बगिया के
नफरत की धार से काटो न तुम
ये धर्म ज़हर अब बन बैठा
ये विष का प्याला चाटो न तुम
ये जीवन मिला तो कर्म कमा
यूँ नफरत को गांठो न तुम
अमन की राह मुश्किल तो नहीं
धर्म की चादर से ढांपो न तुम
तेरी चौखट पे मैं हाज़िर हूँ
वो कहते है मैं काफ़िर हूँ
हर इन्सां का है फ़र्ज़ यही
इन्सां इन्सां से प्यार करे
हर धर्म का बंदा भाई है
क्यों भाई भाई से जा लड़े
इस धरती माँ ने है पाला
क्यों आँचल इसका तार करें
मालिक ने बख्शी एक धरा
क्यों टुकड़े इसके हज़ार करें
इन्सां बनके धरती आये
उसका सजदा सो बार करें
तेरी चौखट पे मैं हाज़िर हूँ
वो कहते है मैं काफ़िर हूँ
आरज़ू-ए-अर्जुन
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