ग़ज़ल
वो आतिशी सुख़नवर कहलातें हैं
जो शोलों पे गुलशन को खिलाते हैं
उसे सागर का पानी भी मीठा लगे
जो ताउम्र आंसुओं में नहाते हैं
ग़र वक्त मिले आना हमारी बस्ती
देख लोगे हम कैसे मुस्कुराते हैं
जो डरते हैं गमों से इतना यारो
वो हर खुशी से भी नज़र चुराते हैं
कयों हो गया है प्यार इस कदर मुझे
जो सहमें सहमें से हम नज़र आते हैं
लो आ गया है वक़्त रूखसती का
अब आखिरी सफर पर हम जाते हैं
तुम आंसू मत बहाना अब आरज़ू
इन आंसुओं में कहीं हम समाते हैं
आरज़ू-ए-अर्जुन
वो आतिशी सुख़नवर कहलातें हैं
जो शोलों पे गुलशन को खिलाते हैं
उसे सागर का पानी भी मीठा लगे
जो ताउम्र आंसुओं में नहाते हैं
ग़र वक्त मिले आना हमारी बस्ती
देख लोगे हम कैसे मुस्कुराते हैं
जो डरते हैं गमों से इतना यारो
वो हर खुशी से भी नज़र चुराते हैं
कयों हो गया है प्यार इस कदर मुझे
जो सहमें सहमें से हम नज़र आते हैं
लो आ गया है वक़्त रूखसती का
अब आखिरी सफर पर हम जाते हैं
तुम आंसू मत बहाना अब आरज़ू
इन आंसुओं में कहीं हम समाते हैं
आरज़ू-ए-अर्जुन
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