ग़ज़ल
वो जबसे नज़रें मिलाने लगे
आँखों से भर के पिलाने लगे
मुझे जबसे उनकी वफायें मिली
मेरे ग़म भी मुस्कुराने लगे
मेरी ज़िंदगी खुशनुमा हो गई
वो जबसे दिल में समाने लगे
हुए जबसे करीब ज़िंदगी के हम
मेरी बेखुदी के होश ठिकाने लगे
हमें समझाने की खातिर यहाँ
ये पत्थर भी फ़र्ज़ निभाने लगे
क्या सच था वो तो बता आरज़ू
अबतक तो सबकुछ फ़साने लगे
आरज़ू-ए-अर्जुन
वो जबसे नज़रें मिलाने लगे
आँखों से भर के पिलाने लगे
मुझे जबसे उनकी वफायें मिली
मेरे ग़म भी मुस्कुराने लगे
मेरी ज़िंदगी खुशनुमा हो गई
वो जबसे दिल में समाने लगे
हुए जबसे करीब ज़िंदगी के हम
मेरी बेखुदी के होश ठिकाने लगे
हमें समझाने की खातिर यहाँ
ये पत्थर भी फ़र्ज़ निभाने लगे
क्या सच था वो तो बता आरज़ू
अबतक तो सबकुछ फ़साने लगे
आरज़ू-ए-अर्जुन
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