ग़ज़ल
रुकी रुकी सी बात को मय्यसर कर दो
दबे हुए एहसास को मय्यसर कर दो
दबी दबी आवाज़ है धड़कनो की हुज़ूर
खोये हुए से प्यार को तसव्वर कर दो
कभी कभी तो लगता है वो खोये है कहीं
छुपे छुपे से राज़ को मुनव्वर कर दो
कली कली से कह रही अदायें जनाब की
बहार आ गई है उन्हें यह ख़बर कर दो
हम रवां थे सहरा में तिश्नगी में तेरी
भर के बाहों में हमें तर बतर कर दो
कौन सा था मोड़ वो तुम जहां पर मिले
ऐ खुदा हर मोड़ को वो रहगुज़र कर दो
अभी अभी तो सीखा है दर्दे इश्क़ आरज़ू
नाज़ुक से दिल को ग़म का समंदर कर दो
आरज़ू-ए-अर्जुन
रुकी रुकी सी बात को मय्यसर कर दो
दबे हुए एहसास को मय्यसर कर दो
दबी दबी आवाज़ है धड़कनो की हुज़ूर
खोये हुए से प्यार को तसव्वर कर दो
कभी कभी तो लगता है वो खोये है कहीं
छुपे छुपे से राज़ को मुनव्वर कर दो
कली कली से कह रही अदायें जनाब की
बहार आ गई है उन्हें यह ख़बर कर दो
हम रवां थे सहरा में तिश्नगी में तेरी
भर के बाहों में हमें तर बतर कर दो
कौन सा था मोड़ वो तुम जहां पर मिले
ऐ खुदा हर मोड़ को वो रहगुज़र कर दो
अभी अभी तो सीखा है दर्दे इश्क़ आरज़ू
नाज़ुक से दिल को ग़म का समंदर कर दो
आरज़ू-ए-अर्जुन
Comments
Post a Comment