आदाब
तेरा सीना हो जिससे तर मैं वो बौछार बन जाऊँ
तेरेे सूखे लबों पे आब मैं हर बार बन जाऊँ
निभाऊं फ़र्ज सब अपने मुझे ये ज़िंदगी जो दे
जो सबकुछ भूल कर हसता है वो किरदार बन जाऊँ
भंवर से खींच लाये जो डरी कश्ती किनारे पर
मुझे दे हौसला मालिक मैं वो पतवार बन जाऊँ
सदा चलती रही आंधी जहाँ नफ़रत की दहशत की
उसी वादी में चाहत अम्न का गुलज़ार बन जाऊँ
कभी फुर्सत नहीं मिलती मेरी मां को मेरे घर से
मै अक्सर चाहूं ये उनके लिए इतवार बन जाऊँ
कभी अंगूर की बेटी से चाहत की नहीं मैने
पिलाओ तुम अगर आंखों से तो मयख़ार बन जाऊँ
मेरे गीतों में ग़ज़लों में मिले खुशबू मुहब्बत की
मैं अपने हर सुख़न में मीठी सी झनकार बन जाऊँ
मुझे तुम सोचते हो बस तुम्हारी 'आरज़ू' हूँ मैं
मगर मैं सोचता हूँ ये तेरा संसार बन जाऊँ
आरज़ू-ए-अर्जुन
तेरा सीना हो जिससे तर मैं वो बौछार बन जाऊँ
तेरेे सूखे लबों पे आब मैं हर बार बन जाऊँ
निभाऊं फ़र्ज सब अपने मुझे ये ज़िंदगी जो दे
जो सबकुछ भूल कर हसता है वो किरदार बन जाऊँ
भंवर से खींच लाये जो डरी कश्ती किनारे पर
मुझे दे हौसला मालिक मैं वो पतवार बन जाऊँ
सदा चलती रही आंधी जहाँ नफ़रत की दहशत की
उसी वादी में चाहत अम्न का गुलज़ार बन जाऊँ
कभी फुर्सत नहीं मिलती मेरी मां को मेरे घर से
मै अक्सर चाहूं ये उनके लिए इतवार बन जाऊँ
कभी अंगूर की बेटी से चाहत की नहीं मैने
पिलाओ तुम अगर आंखों से तो मयख़ार बन जाऊँ
मेरे गीतों में ग़ज़लों में मिले खुशबू मुहब्बत की
मैं अपने हर सुख़न में मीठी सी झनकार बन जाऊँ
मुझे तुम सोचते हो बस तुम्हारी 'आरज़ू' हूँ मैं
मगर मैं सोचता हूँ ये तेरा संसार बन जाऊँ
आरज़ू-ए-अर्जुन
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