आदाब
जैसे खिलता हुआ कंवल कोई
वो मुहब्बत की है ग़ज़ल कोई
ग़म सिमटने लगे हैं अब मेरे
दे रहा है ख़ुशी के पल कोई
यह मुहब्बत तो एक उलझन है
जिसका मिलता नही है हल कोई
जब सुकूँ झोंपड़ी में मिल जाये
फिर बनायेगा क्यों महल कोई
लौट आऊँ मैं फिर से बचपन में
काश मिल जाए ऐसा पल कोई
क्यों वो आये हैं 'आरज़ू 'छत पे
लो फ़लक पे रहा है जल कोई
आरज़ू-ए-अर्जुन
जैसे खिलता हुआ कंवल कोई
वो मुहब्बत की है ग़ज़ल कोई
ग़म सिमटने लगे हैं अब मेरे
दे रहा है ख़ुशी के पल कोई
यह मुहब्बत तो एक उलझन है
जिसका मिलता नही है हल कोई
जब सुकूँ झोंपड़ी में मिल जाये
फिर बनायेगा क्यों महल कोई
लौट आऊँ मैं फिर से बचपन में
काश मिल जाए ऐसा पल कोई
क्यों वो आये हैं 'आरज़ू 'छत पे
लो फ़लक पे रहा है जल कोई
आरज़ू-ए-अर्जुन
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