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कैसे कहे शज़र कोई पत्थर न आएगा

आदाब

रूठा है इस कदर  के  वो रहबर न आएगा
अब थामने को हाथ  वो दिलबर न आएगा

हम  लांघ  आयें  हैं  कई  उम्रों  के  फासले
बचपन  का  बेशकीमती  मंज़र  न आएगा

लिखना पड़ेगा  आपको  इतिहास आप ही
किस्मत  सवारने  को   मुकद्दर  न  आएगा

जिस पेड़ पर लदी सी हों फलदार डालियाँ
कैसे  कहे   शज़र  कोई  पत्थर  न आएगा

नादान हो  बशर के  फ़क़त  सोचते हो तुम
मंज़िल  के  रास्ते  में   समंदर   न  आएगा

करता है  माफ़ आपको  खून-ए-जिगर मेरा
कहता है  नाम आपका  लब पर न आएगा

माना के हमसफ़र  है वो, पर  है तो आदमी
वो जान पर तो  खेल के अक्सर न आएगा

दुनिया को जीतना है तो  कर प्यार 'आरज़ू'
सच ये बताने आप को  सिकंदर न आएगा

आरज़ू -ए-अर्जुन

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Aaj ke yoga divas par meri ye rachna..          चलो योग करें एक  काम सभी  हम रोज़ करें योग   करें   चलो   योग   करें भारत  की  पहचान   है   यह वेद-पुराण  का  ग्यान  है  यह स्वस्थ   विश्व   कल्याण   हेतु जन जन का अभियान है यह सीखें    और     प्रयोग    करें योग   करें   चलो   योग   करें मन  को निर्मल  करता  है यह तन को  कोमल  करता है यह है  यह  उन्नति  का  मार्ग  भी सबको  चंचल  करता  है  यह बस  इसका  सद  उपयोग करें योग   करें   चलो    योग   करें पश्चिम   ने   अपनाया   इसको सबने   गले   लगाया    इसको रोग  दोष   से  पीड़ित  थे  जो राम  बाण  सा  बताया  इसको सादा    जीवन   उपभोग   करें योग   करे...

" न रुकना कभी न थकना कभी "

" न रुकना कभी न थकना कभी " इस जहाँ में कौन नहीं, जो परेशान है  है कोई ऐसा, जिसकी राहें आसान है किसी को कम तो किसी को ज्यादा सहना पड़ता है ज़िंदगी जो दे, जैसे रखे, रहना पड़ता है है कदम ज़िंदा तो राहों का निर्माण कर है बाज़ुओं में दम तो मुश्किलों को आसान कर है हौंसला, तो एक लम्बी उड़ान कर है नज़र तो सच की पहचान कर मत सुना ज़िंदगी को मैं थक गया हूँ राह में और बोझिल लगेगी ये  ज़िंदगी इस राह में मत सूखने दे ये पानी अपनी ख्वाबमयी आँखों में सजा तू तमाम सपने जो छुप गए है कहीं रातों में जब रूठ जाए ये चाँद,सितारे और सूरज भी तुमसे मत होना अधीर और एक वादा करना खुद से तू रुक गया तो इन्सां नहीं तू झुक गया तो इन्सां नहीं न थकना कभी न रुकना कभी, कर खुद से बातें पर चुप रह न कभी क्या पता अगले मोड़ पे मंजिल खड़ी हो किसे खबर तेरे क़दमों तले खुशियां पड़ी हों कर नज़र ज़बर और सबर को मज़बूत तुम किसे पता कल तेरे आगे दुनिया झुकी हो . (आरज़ू ) AARZOO-E-ARJUN

"ਖਜੂਰ ਦਾ ਰੁਖ " ( in punjabi)

"ਖਜੂਰ ਦਾ ਰੁਖ " ਮੇਰੇ ਖੇਤ ਦੇ ਵੱਟ ਤੇ ਇਕ ਖਜੂਰ ਦਾ ਰੁਖ ਹੈ ਸ਼ਾਇਦ ਅਣਚਾਹੀ ਬਰਸਾਤ ਵਿੱਚ ਪੂੰਗਰਿਆ ਸੀ ਵੇਖਦੇ ਵੇਖਦੇ ਕਿਸੇ ਗਰੀਬ ਦੀ ਧੀ ਵਾਂਗ ਜਵਾਨ ਹੋ ਗਿਆ ਮੈਂ ਨਾ ਤੇ ਇਸਨੂੰ ਕੋਈ ਖਾਦ ਪਾਈ ਨਾ ਹੀ ਪਾਣੀ ਦਿੱਤਾ, ਇਸ ਰੁਖ ਨੂੰ ਵੇਖ ਕੇ ਮੈਂਨੂੰ ਧੀ ਨਿਮੋ ਦੀ ਯਾਦ ਆਈ ਦੋਵੇਂ ਹੀ ਬੇਜ਼ੁਬਾਨ, ਇਕ ਖੇਤ ਵਿੱਚ ਇਕ ਚੇਤ ਵਿੱਚ ਨਾ ਉਸਨੇ ਮੇਰੇ ਕੋਲੋਂ ਕਿਸੇ ਚੀਜ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ਨਾ ਇਸ ਖਜੂਰ ਨੇ ਹੀ ਮੇਰੇ ਕੋਲੋਂ ਕੁਝ ਮੰਗਿਆ ।                        ਮੇਰੇ ਖੇਤ ਦੇ ਵੱਟ ਤੇ ਇਕ ਖਜੂਰ ਦਾ ਰੁਖ ਹੈ                        ਸ਼ਾਇਦ ਅਣਚਾਹੀ ਬਰਸਾਤ ਵਿੱਚ ਪੂੰਗਰਿਆ ਸੀ ਕਿਨੀਆਂ ਗਰਮੀਆਂ ਵਿੱਚ ਭੁਜਦਾ ਸੜਦਾ ਰਿਹਾ ਸੀ ਇਹ ਪਤਾ ਨਹੀ ਕਿਵੇਂ ਝਲ੍ਹਦਾ ਸੀ ਇਹ ਝਖੜ ਹਨੇਰੀਆਂ ਸਿਰ ਤੇ ਗਿਣਤੀ ਦੇ ਪੱਤੇਆਂ ਦੀ ਪਗੜੀ ਪਾ ਕੇ ਝੁਮਦਾ ਹੈ ਗਾਉਂਦਾ ਹੈ " ਮੇਰਾ ਕਦ ਅਸਮਾਨੀ, ਮੇਰਾ ਕਦ ਅਸਮਾਨੀ " ਇਸਦੀ ਮੁਸਕਾਨ ਨਿਮੋ ਨਾਲ ਕਿੰਨੀ ਮਿਲਦੀ ਹੈ ਗਰੀਬੀ ਤੇ ਮਜ਼ਬੂਰੀ ਦੀ ਪੱਗ ਨੂੰ ਗਿਰਵੀ ਰਖ ਕੇ ਕਰਮਾਂ ਦੀ ਮਾੜੀ ਨੂੰ  ਚੁੰਨੀ ਚੜਾਈ ਸੀ, ਮੈਂ ਤਾਂ ਹਾਲੇ ਅਖਾਂ ਵੀ ਨਹੀ ਝਪਕਾਈਯਾਂ ਸਨ ਉਸਤੇ ਪਤਾ ਨਹੀ ਕਦੋਂ ਜਵਾਨੀ ਆਈ ਸੀ    ...