आदाब
अगर मिलते न राहों में तो कैसे दोस्ती होती
कहीं बिखरे पड़े होते, अधूरी ज़िंदगी होती
अगर सोचूँ न आते तुम सफ़र में रौशनी बन के
भटकता. रास्तों पे मैं , हमेशा तीरगी होती
चला था काफ़िले में पर अकेला फिर भी था यारा
अगर तुमसे न मिलता तो ये दुनिया अजनबी होती
चलो गम ही सही यारो हमारे पास कुछ तो है
अगर ये भी नहीं होता तो सच में मुफलिसी होती
है उनके पास नौकर भी, है बंगला और गाड़ी भी
मैं उनको बादशाह कहता लबों पे ग़र हसी होती
हमेशा दूसरो के वास्ते चलता रहा हूँ मैं
नज़ारा और ही होता अगर खुद की सुनी होती
मेरी तनहाईयों में हमसफ़र थे ये सुख़न मेरे
मैं लिखना छोड़ देता तो ये मेरी खुदखुशी होती
बड़ी संजीदगी से की मुहब्बत 'आरज़ू ' मैने
मज़ा कुछ और भी आता ज़रा आवारगी होती
आरज़ू -ए-अर्जुन
अगर मिलते न राहों में तो कैसे दोस्ती होती
कहीं बिखरे पड़े होते, अधूरी ज़िंदगी होती
अगर सोचूँ न आते तुम सफ़र में रौशनी बन के
भटकता. रास्तों पे मैं , हमेशा तीरगी होती
चला था काफ़िले में पर अकेला फिर भी था यारा
अगर तुमसे न मिलता तो ये दुनिया अजनबी होती
चलो गम ही सही यारो हमारे पास कुछ तो है
अगर ये भी नहीं होता तो सच में मुफलिसी होती
है उनके पास नौकर भी, है बंगला और गाड़ी भी
मैं उनको बादशाह कहता लबों पे ग़र हसी होती
हमेशा दूसरो के वास्ते चलता रहा हूँ मैं
नज़ारा और ही होता अगर खुद की सुनी होती
मेरी तनहाईयों में हमसफ़र थे ये सुख़न मेरे
मैं लिखना छोड़ देता तो ये मेरी खुदखुशी होती
बड़ी संजीदगी से की मुहब्बत 'आरज़ू ' मैने
मज़ा कुछ और भी आता ज़रा आवारगी होती
आरज़ू -ए-अर्जुन
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