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Zindgi ko vo bashar jeet liya karte hai..

आदाब
2122 1122 1122 22/112

इस  ज़माने   में  मुहब्बत  जो  किया  करते हैं
ज़ख़्म  अपने  ही  वो  हाथों  से सिया करते हैं

रात  भर  सोचते   रहते  हैं  सितारे   गिन  के
ईश्क  में  आंख वो  कब  बंद  किया  करते हैं

जो भी  बनते  हैं  मसीहा  सा  ज़माने के लिए
दर्द   ही   दर्द   ज़माने   से   लिया   करते   हैं

बात दिल  की जो जुबाँ पे  है रूकी कब से मेरे
आज भी  दिल  में  उसे  दफ़्न किया  करते हैं

वो  किसी  जाम  से  मदहोश  नहीं  हो  सकते
जो  सितमगर  की  निगाहों  से  पिया करते हैं

मौत  तो  रोज़  चली आती  है  मिलने के लिए
हम  ही  कमबख़्त  उसे  टाल  दिया  करते  हैं

तीरगी  देख  के  जो  डर  के  कदम  लें  पीछे
ज़िंदगी  की  वो  सहर ख़ाक  जिया  करते  हैं

'आरज़ू'  हौसले   की  ढ़ाल  है  जिनके  हाथों
ज़िंदगी  को  वो  बशर  जीत  लिया  करते  हैं

आरज़ू-ए-अर्जुन

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"ਖਜੂਰ ਦਾ ਰੁਖ " ( in punjabi)

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