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Showing posts from April, 2017

बात दिल की रही अनकही

आदाब अंजुमन  में  रहे  अजनबी  आज  फिर बात दिल की रही अनकही आज फिर हम   छुपाते   रहे   पर   छुपा  न  सके आंखों  में  आ गई थी नमी आज फिर वो  अदा  फिर  दिखा  दे मुझे हमनशीं दिल मचल जाये हो बेकली आज फिर लाख़ दिल में हों ग़म फिर भी हँसना पड़े क्यों है मज़बूर  ये  आदमी आज  फिर आंख  रोती  रही  दिल  सुलगता  रहा हर किसी की  सही बेरुखी़ आज फिर देश  को  फिर  बनाने  लगे  क़त्लगाह् है ज़रूरत भगत  सिंहकी  आज फिर चार  पैसे  कमाने  को  निकला  बशर साथ  लाया  वही  बेबसी  आज  फिर लग  रही  थी   संवर  जाएगी  'आरज़ू' क्या से क्या हो गई ज़िंदगी आज फिर आरज़ू-ए-अर्जुन

अंधेरे भी करते हैं इंसां को रौशन

आदाब करो  मत  मुझे  रौशनी  के हवाले ये   हैं  बेवफ़ा,  बेमुरव्वत  उजाले अंधेरा भी करता है इंसां को रौशन बुरे वक्त  को  चल  गले से लगाले बड़ी  तेज़  रफ्तार  है  ज़िंदगी की कदम से कदम ज़िंदगी के मिलाले भरी बज्म में  मैं ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ कहीं दिख न जाएँ मेरे दिल के छाले मिली क्या कभी राह-ए-उल्फत में मंज़िल गए सारे तन्हा वो आशिक़ निराले न  छोड़ो कभी  जूठ थाली में यारो बड़ी मुश्किलों से हैं मिलते निवाले निगाहों में रखते हैं आयत कुरां की दिलों  में   हमारे   मिलेंगे  शिवाले है  तकदीर  तेरी  तेरे  हाथ  में  ही फनां कर खुदी को यां खुद को सजाले मिलाओ नई  नस्ल को  देश से भी विरासत  वतन  की  है  तेरे हवाले अभी 'आरज़ू' रात लंबी मगर कल तुम्हारे  लिए   मुंतज़िर  है  उजाले आरज़ू-ए-अर्जुन

मैं लिखना छोड़ देता तो ये मेरी खुदखुशी होती

आदाब अगर  मिलते  न  राहों  में  तो  कैसे दोस्ती होती कहीं  बिखरे  पड़े   होते,  अधूरी  ज़िंदगी   होती अगर सोचूँ  न आते  तुम  सफ़र में रौशनी बन के भटकता.  रास्तों   पे   मैं ,  हमेशा   तीरगी  होती चला था काफ़िले में पर अकेला फिर भी था यारा अगर तुमसे न मिलता तो ये दुनिया अजनबी होती चलो  गम  ही  सही  यारो हमारे  पास कुछ तो है अगर ये भी नहीं होता तो सच में मुफलिसी होती है उनके पास नौकर भी, है बंगला और गाड़ी भी मैं उनको बादशाह  कहता लबों पे ग़र हसी होती हमेशा  दूसरो   के   वास्ते   चलता   रहा   हूँ   मैं नज़ारा  और ही  होता अगर  खुद की सुनी होती मेरी  तनहाईयों  में  हमसफ़र  थे   ये  सुख़न  मेरे मैं  लिखना  छोड़ देता तो ये मेरी खुदखुशी होती बड़ी   संजीदगी  से   की   मुहब्बत  'आरज़ू ' मैने मज़ा  कुछ  और  भी आता  ज़रा आवारगी होती आरज़ू -ए-अर्जुन

कैसे कहे शज़र कोई पत्थर न आएगा

आदाब रूठा है इस कदर  के  वो रहबर न आएगा अब थामने को हाथ  वो दिलबर न आएगा हम  लांघ  आयें  हैं  कई  उम्रों  के  फासले बचपन  का  बेशकीमती  मंज़र  न आएगा लिखना पड़ेगा  आपको  इतिहास आप ही किस्मत  सवारने  को   मुकद्दर  न  आएगा जिस पेड़ पर लदी सी हों फलदार डालियाँ कैसे  कहे   शज़र  कोई  पत्थर  न आएगा नादान हो  बशर के  फ़क़त  सोचते हो तुम मंज़िल  के  रास्ते  में   समंदर   न  आएगा करता है  माफ़ आपको  खून-ए-जिगर मेरा कहता है  नाम आपका  लब पर न आएगा माना के हमसफ़र  है वो, पर  है तो आदमी वो जान पर तो  खेल के अक्सर न आएगा दुनिया को जीतना है तो  कर प्यार 'आरज़ू' सच ये बताने आप को  सिकंदर न आएगा आरज़ू -ए-अर्जुन

हमारी ज़िंदगी हरपल हमें बस आज़माती है

आदाब खुशी के पल दिखाती है, ग़मों से भी मिलाती है हमारी  ज़िंदगी  हरपल  हमें  बस आज़माती  है हमेशा  तीरगी  ही  हो,  ज़रूरी  तो  नहीं  है यह ख़िजा़ के बाद देखा है, फ़िज़ा भी लौट आती है कभी वादा न करना तुम, हमेशा कोशिशें करना ये वादों का भरोसा क्या  हमें कोशिश बढ़ाती है किसी पे भी यकीं यारो न आंखें मूंद कर करना भरोसा  टूटता  है  जब कमर  भी  टूट  जाती है बता मुझको मेरे  मौला ख़ता मुझसे हुई है क्या दुआ मेरी न जाने क्यों  फ़लक से लौट आती है बड़ा  हैरान  होता हूँ  अमीरो  देख  कर  तुमको तुम्हारे  ख़ाबगाह की  नींद भी तुमको  डराती है सुकूँ की नींद क्या होती कभी बस्ती मेरी आना टहलते  खा़ब  हैं  छत पे  हवा लोरी  सुनाती है ज़मीरों का कभी सौदा नहीं करते किसी से हम ग़रीबी  में   हमारी   ज़िंदगी   भी  मुस्कुराती  है झुका  हो  'आरज़ू '  कोई  उसे  ऊँचा  उठा देना किसी को  यूं  उठाना भी  हमें  ऊँचा  उठाती  है आरज़ू -ए-अर्जुन

Meri tarah tadpa karte ho

आदाब मेरी तरह  तड़पा करते  हो चुपके  से  रोया  करते  हो आंखें पुरनम  रहती हरदम हसने  का  वादा  करते हो क्या मिला  होकर के तन्हा किस लिए  रूठा  करते हो जीना मुश्किल  हो जाता है फिर भी तुम ऐसा करते हो यार बताओगे  तुम मुझ को तन्हाई  में  क्या   करते  हो सुलगा सुलगा रहता हूँ जब ख़ाबों  में  आया  करते  हो थपकी  देता  हूँ मैं शब भर ठीक बगल  सोया करते हो मुझको  हवायें  कह देती हैं शाम ढ़ले तुम क्या करते हो चांद भी  जलता  देखा मैने छत पे जब आया करते हो मुझपे  हसकर  जाते  हैं वो जिनका तुम सजदा करते हो उलझे  उलझे  मिसरे  थे वो धुन क्या वो  गाया करते हो शिकवे  कैसे  लब  पे  लाऊँ जो  करते  अच्छा  करते हो देर  लगा   दी   आते   आते मुझसे ही  शिकवा  करते हो वक्त-ए-रूख़सत है अब जानां रोकर  आज  विदा करते हो रो रो  के  कहते  हो  उठ  जा अर्जुन  को  रूसवा  करते हो आरज़ू-ए-अर्जुन

लगेगी हमारी भी किश्ती किनारे

आदाब लगेगी हमारी भी किश्ती किनारे करें जब सफ़र  हौसले के सहारे भरोसा तो खुद पे ही करना पड़ेगा हथेली  पे  ग़र  चाहते  हो सितारे किसी को नहीं तू बदल दे खुदी को बदल जाएंगे फिर  ये  सारे नज़ारे पिटारी  नहीं  आस्तीं  को टटोलो वही  पे  सपोले   छुपे   होंगे  सारे बड़ा नाज़ करते हो खुद पे समंदर मेरे अश्क़ हैं आज तुमसे भी खारे अंधेरा  सवेरा   सभी   हैं   बदलते तो समझा करो हर किसी के इशारे ज़रा सा अंधेरा दिखा के वो समझे हुआ आज सूरज लो वश में हमारे वो नादान  हैं, ये  समझते  नहीं  हैं के मुट्ठी  में  टिकते  नहीं  हैं  शरारे अगर सांस भरके भी बेचोगे उनको वो फिर भी  खरीदेंगे  गैसी  ग़ुब्बारे ये मंज़िल कहाँ 'आरज़ू' इतनी मुश्किल हमीं रूक के चलते हैं डर डर के सारे आरज़ू -ए-अर्जुन

राज़ दिल में ही दबा देते हैं

आदाब सेज़  यादों  की  जला  देते  हैं राज़  दिल  में  ही  दबा देते  हैं कोई  पढ़  ना ले, मेरे चेहरे को यार   मुस्कान   सजा   देते  हैं एक भी एहसान नहीं रखते हम शुक्रिया  कह  के चुका देते  हैं तुम यकीं करते हो अपनों पे क्यों यार  अपने   ही   दगा   देते  हैं दिल  करे  फूट के रोने का जब सब  दिये  घर  के  बुझा देते  हैं आदमी  काम  का  है  तो यारो उसको  कांघे   पे  उठा  देते  हैं आदमी काम  ना आये तो फिर ला  ज़मीं  पर  भी गिरा  देते  हैं हौसला आग पे  चलने  का हम इस  ज़माने  को  दिखा  देते  हैं 'आरज़ू ' मान  भी  ले  बात मेरी सबको  इस  बार  हिला  देते हैं आरज़ू -ए-अर्जुन