आदाब
अगर ठोकरों का मैं मारा न होता
चमकता हुआ सा सितारा न होता
न पहचानते तुम मुझे इस जहां में
अगर खुद को मैने निखारा न होता
बुरे वक्त से सीख मिलती न मुझको
तो राहों को अपनी संवारा न होता
बनाता न खुद को जो चट्टान जैसा
रकीबों में मेरा गुज़ारा न होता
कहाँ जीत पाता तुम्हीं को तुम्हीं से
मैं इस दिलको तुमपे जो हारा न होता
ग़मों से अगर दिल लगाता तो यारो
मैं दुनियां में यूं बेसहारा न होता
चले जाते दुनिया तेरी छोड़ कर हम
अगर दिल से तुमने पुकारा न होता
हां तूफान में 'आरज़ू' डूब जाता
अगर हौसले ने उबारा न होता
आरज़ू -ए-अर्जुन
अगर ठोकरों का मैं मारा न होता
चमकता हुआ सा सितारा न होता
न पहचानते तुम मुझे इस जहां में
अगर खुद को मैने निखारा न होता
बुरे वक्त से सीख मिलती न मुझको
तो राहों को अपनी संवारा न होता
बनाता न खुद को जो चट्टान जैसा
रकीबों में मेरा गुज़ारा न होता
कहाँ जीत पाता तुम्हीं को तुम्हीं से
मैं इस दिलको तुमपे जो हारा न होता
ग़मों से अगर दिल लगाता तो यारो
मैं दुनियां में यूं बेसहारा न होता
चले जाते दुनिया तेरी छोड़ कर हम
अगर दिल से तुमने पुकारा न होता
हां तूफान में 'आरज़ू' डूब जाता
अगर हौसले ने उबारा न होता
आरज़ू -ए-अर्जुन
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