आदाब
शाम ढ़ल जाती है यूं सुलगी हुई
ज़िंदगी है प्यार में उल्झी हुई
मयकदा रोने सा लगता है मेरा
जब दिखे आंखें तेरी छलकी हुई
सांस बाकी है अभी कुछ सीने में
जान उसमें है मेरी अटकी हुई
कल खिली गुलशन में महकी सी कली
दिख रही है आज वो चटकी हुई
हर कोई मायूस चलता फिर रहा
ज़िंदगी सबकी लगे भटकी हुई
किसके दिल में है खुदा ये तो बता
हाथ में माला है बस पकड़ी हुई
घर के रिश्ते जाल जैसे बन गए
आदमी की ज़िन्दगी मकड़ी हुई
आरज़ू तू किस लिए रोता यहाँ
हर खुशी है दर्द में लिपटी हुई
आरज़ू -ए-अर्जुन
शाम ढ़ल जाती है यूं सुलगी हुई
ज़िंदगी है प्यार में उल्झी हुई
मयकदा रोने सा लगता है मेरा
जब दिखे आंखें तेरी छलकी हुई
सांस बाकी है अभी कुछ सीने में
जान उसमें है मेरी अटकी हुई
कल खिली गुलशन में महकी सी कली
दिख रही है आज वो चटकी हुई
हर कोई मायूस चलता फिर रहा
ज़िंदगी सबकी लगे भटकी हुई
किसके दिल में है खुदा ये तो बता
हाथ में माला है बस पकड़ी हुई
घर के रिश्ते जाल जैसे बन गए
आदमी की ज़िन्दगी मकड़ी हुई
आरज़ू तू किस लिए रोता यहाँ
हर खुशी है दर्द में लिपटी हुई
आरज़ू -ए-अर्जुन
Comments
Post a Comment