आदाब
तुम मिले क्या हमें , ज़िंदगी मिल गई
हमने चाही थी जो वो खुशी मिल गई
हम भटकते रहे तीरगी में सदा
तेरी आमद हुई रौशनी मिल गई
तन्हा तन्हा सी थी राह-ए-उल्फत मेरी
साथ तुम क्या चले रहबरी मिल गई
तेरे आने से ही लब पे जुंबिश हुई
इन लबों को दुबारा हसी मिल गई
सिर झुकाया नहीं था किसी के लिए
मैं था काफ़िर मगर बंदगी मिल गई
'आरज़ू ' की ग़ज़ल तब मुकम्मल हुई
अंजुमन में तेरी जब नमी मिल गई
आरज़ू -ए-अर्जुन
तुम मिले क्या हमें , ज़िंदगी मिल गई
हमने चाही थी जो वो खुशी मिल गई
हम भटकते रहे तीरगी में सदा
तेरी आमद हुई रौशनी मिल गई
तन्हा तन्हा सी थी राह-ए-उल्फत मेरी
साथ तुम क्या चले रहबरी मिल गई
तेरे आने से ही लब पे जुंबिश हुई
इन लबों को दुबारा हसी मिल गई
सिर झुकाया नहीं था किसी के लिए
मैं था काफ़िर मगर बंदगी मिल गई
'आरज़ू ' की ग़ज़ल तब मुकम्मल हुई
अंजुमन में तेरी जब नमी मिल गई
आरज़ू -ए-अर्जुन
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