ग़ज़ल
मात्रा : 1222 1222 1222 1222 ( मुफाईलुन )
मुझे समझा दिवाना क्यों फ़साना सच कहा मैंने
लगी है आग दिल में क्यों बताना सच कहा मैंने
ज़रा सा वक़्त में उल्झा शिकायत बन गयी उनकी
हसीनों की महारत है रुलाना सच कहा मैंने
लुटाना छीन कर उनमें वही आदत ज़माने की
बड़ा मशहूर है किस्सा पुराना सच कहा मैंने
जलाते दीप राहों पे किसी की मौत पे फिर भी
चलेगा मूँद कर आंखें ज़माना सच कहा मैंने
भरी है जेब बच्चों की नशे से आज भी यारो
हमारा फ़र्ज़ बनता है बचाना सच कहा मैंने
अभागे हैं विभाजे हैं यहाँ पर हम लड़ें किससे
वो लेते हैं किताबों का बहाना सच कहा मैंने
अगर खाना है जी भरके तो चक्की पीसनी होगी
नहीं आसान रोटी को कमाना सच कहा मैंने
हमारे बिन नहीं कुछ तुम जताते रोज़ ही मुझको
बताया सच तो भूलेंगे जताना सच कहा मैंने
खड़े चट्टान बन कर हम निगाहों में ज़माने की
बड़ा मुश्किल उन्हें होगा हिलाना सच कहा मैंने
दिवाने 'आरज़ू ' ने तो कही बातें सभी सच ही
अगर झूठी लगे तुमको बताना सच कहा मैंने
आरज़ू-ए-अर्जुन
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