ग़ज़ल
मात्रा : 221 2121 1221 212
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वो बात दिल की दिल में दबा कर चले गए
कुछ इस तरह से राज़ छुपाकर चले गए
ख़ामोश से रहे उनके होंठ भी मगर
वो ज़िंदगी का दर्द सुनाकर चले गए
माथे को चूमकर के वो चलते रहे मगर
भीगे लबों से आज जलाकर चले गए
दो चार आंसुओं को गिराया ज़रूर था
दिल पर पड़े वो छाले दिखाकर चले गए
फिर लौट कर न आएगी यह रात "आरज़ू"
है आखरी यह रात बताकर चले गए
आरज़ू-ए-अर्जुन
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