ग़ज़ल
मात्रा : 1222 1222 1222 1222
अर्कान : मुफाईलुन * 8
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बड़ी मुश्किल हुई यारो मुहब्बत को निभाने में
मिली है चोट इस दिल पे मुरव्वत को निभाने में
लबों पे है तबस्सुम और आँखों में शिकायत भी
मिली कुछ ख़ास ये चीज़ें मुहब्ब्त को निभाने में
मुहबबत में किया वादा मेरी तो जान ले बैठा
हुआ हासिल भी क्या यारो शराफ़त को निभाने में
यहाँ झुलसे है सहरा में यहाँ मरते जुदा होके
सहा क्या-क्या न लोगों ने मुहब्ब्त को निभाने में
ज़रा सी बात पे देखो मरे जाते हैं लड़ लड़ के
मिलेगा क्या बताओ तुम ख़िलाफ़त को निभाने में
मुझे मालूम था यह भी नहीं आएंगें वो मिलने
मरे से जा रहे होंगे अदावत को निभाने में
चलो अब तोड़ भी दें हम चुनीं दीवार नफ़रत की
हुए बर्बाद कितने साल नफ़रत को निभाने में
बताये 'आरज़ू' तुमको मुहब्बत से ज़रा बचना
रहोगे ज़िंदगी से दूर क़ुरबत को निभाने में
आरज़ू-ए-अर्जुन
मात्रा : 1222 1222 1222 1222
अर्कान : मुफाईलुन * 8
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बड़ी मुश्किल हुई यारो मुहब्बत को निभाने में
मिली है चोट इस दिल पे मुरव्वत को निभाने में
लबों पे है तबस्सुम और आँखों में शिकायत भी
मिली कुछ ख़ास ये चीज़ें मुहब्ब्त को निभाने में
मुहबबत में किया वादा मेरी तो जान ले बैठा
हुआ हासिल भी क्या यारो शराफ़त को निभाने में
यहाँ झुलसे है सहरा में यहाँ मरते जुदा होके
सहा क्या-क्या न लोगों ने मुहब्ब्त को निभाने में
ज़रा सी बात पे देखो मरे जाते हैं लड़ लड़ के
मिलेगा क्या बताओ तुम ख़िलाफ़त को निभाने में
मुझे मालूम था यह भी नहीं आएंगें वो मिलने
मरे से जा रहे होंगे अदावत को निभाने में
चलो अब तोड़ भी दें हम चुनीं दीवार नफ़रत की
हुए बर्बाद कितने साल नफ़रत को निभाने में
बताये 'आरज़ू' तुमको मुहब्बत से ज़रा बचना
रहोगे ज़िंदगी से दूर क़ुरबत को निभाने में
आरज़ू-ए-अर्जुन
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