Ghazal
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पलकों पे मुझको बिठाया तुम्ही ने
मुझको नज़र से गिराया तुम्ही ने
सीने लगाया खिलौना समझ के
खिड़की से बाहर बहाया तुम्ही ने
शिकवा करूँ क्या यहाँ तीरगी का
इस ज़िंदगी को बनाया तुम्ही ने
कितने हसे थे तेरी आशिकी में
कितना मगर फिर रूलाया तुम्ही ने
काफ़िर बनाने से पहले यहाँ पे
मुझको खुदा भी बनाया तुम्ही ने
झूठी मुहब्बत बनी ज़िंदगी है
सचकर सभी को दिखाया तुम्ही ने
मिलते रहे जो हमें मुस्कुराये
उनको हमीं पे हसाया तुम्ही ने
तुमसे शिकायत नहीं आरज़ू को
है ज़िंदगी क्या बताया तुम्ही ने
आरज़ू-ए-अर्जुन
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पलकों पे मुझको बिठाया तुम्ही ने
मुझको नज़र से गिराया तुम्ही ने
सीने लगाया खिलौना समझ के
खिड़की से बाहर बहाया तुम्ही ने
शिकवा करूँ क्या यहाँ तीरगी का
इस ज़िंदगी को बनाया तुम्ही ने
कितने हसे थे तेरी आशिकी में
कितना मगर फिर रूलाया तुम्ही ने
काफ़िर बनाने से पहले यहाँ पे
मुझको खुदा भी बनाया तुम्ही ने
झूठी मुहब्बत बनी ज़िंदगी है
सचकर सभी को दिखाया तुम्ही ने
मिलते रहे जो हमें मुस्कुराये
उनको हमीं पे हसाया तुम्ही ने
तुमसे शिकायत नहीं आरज़ू को
है ज़िंदगी क्या बताया तुम्ही ने
आरज़ू-ए-अर्जुन
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