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Showing posts from 2013

( मेरी बीवी हाय )

( मेरी बीवी हाय ) कुछ  साल हुए है शादी को, मेरी बर्बादी को, अब हर साल इसे मनाते है, शोक पे हर्ष दिखाते है मायूसी न दिख जाये चेहरे पे इसलिए बीवी के आगे हम मुस्कुराते है बस तरस गए है आज़ादी को, कुछ साल हुए है शादी को  पहले  हाथ पकड़ता था तो सिहर जाती थी अब हाथ लगाता हूँ तो बिगड़ जाती है उसके बाद  तो शामत ही आ जाती है आँखे लाल और भृकुटियाँ तन जाती है कहती है जानते हो भारत की  आबादी को, कुछ साल हुए है शादी को भगवान् की दया से एक बेटा है जो बीवी के बगल में लेटा है उसे थपकियाँ देके खुद सो जाती है और मेरी बत्ती तो जैसे गुल हो जाती है अब सिर खुजलाते है रात आधी को, कुछ साल हुए है शादी को सुबह  उठो तो घर एक जंग  का मैदान है उसके हाथों में करछी, बेलन का सामान है रुमाल मोजे कही मिलते नहीं, कौन टोके उसे, कैसी फसी मुश्किल में जान है मुह में बोल के रह जाते है " नाश्ता तो दो", कुछ साल हुए है शादी को अब बेटे को स्कूल छोड़ने जाते है और वापसी में दूध लेके आते है इश्क़ लड़ाने कि उम्र में देखो किस चक्कर में फस जाते है टोक के मुझको कहती है 'सर्फ़ सा...

(दिशा की तलाश )

( दिशा की तलाश ) परछाइयाँ  कभी सहारा नहीं बनती   बस साथ होने का भ्रम देती है  खुद से जुडी कितनी भी लगे चाहे  काली रात में दिखाई कम देती है मैं गुजरता तो हूँ चांदनी रातों में भी कभी दाएँ तो कभी बाएं से छल देती है कोई साथ नहीं तेरे खुद को साथ बनाना सीख ले हर तरफ भ्रम उभरते, इस भ्रम को भरमाना सीख ले    तूं  डर से हर वक़त घबराता है इस  डर को तूं समझ तो सही कितने  काम तू सहज कर जाता है यह डर ही तो है इसके पीछे कहीं तू सुन्न है मंजिल की राहों को देख कर इसी डर की वजह तू पहुचेगा वहीँ है दोस्त यह डर तेरा इससे दोस्ती करना सीख ले इस डर कि पेचीदगी को निडरता से हरना सीख ले तू  राह में कही थक जाये तो क्यों पैरों को दोष देता है तू चलते चलते फिसल जाये क्यों राहों को दोष देता है कभी रह रह कर आँखे भर आये क्यों हवाओं को दोष देता है कर राहों से दोस्ती और  इनपे चलना सीख ले समेट कर आंसुओ को हर सपना जीना सीख ले राह में तू अकेला नहीं चल रहा कुछ और भी बढ़ते होंगे वहाँ देख कर उनकी तेज़ रफ़्तार को मत खुद को तू विचलि...

( रोज़ एक नई जंग )

( रोज़ एक नई जंग )  मैं रोज़ सुबह जब उठता हूँ  अपनी ही आँखों में झांकता हूं एक जंग सी दिखाई देती है अक्सर, रात के सपने से चूर जब, अपने आप को फिर से समेटता हूँ , खुद को तैयार करता हूँ , और फिर से इस जंग में घुल जाता हूँ. आईने के सामने खुद को देखना, अपने आप से सवाल करना , और उन्हें पूरा करने की कसमें खाना एक आदत सी बन गई है यह समझ में नहीं आता के ज़िन्दगी को जीने के लिए इतनी ज़ददो ज़हद  क्यों ? हमें अपने सपनो को पूरा करने के लिए किसी दुसरे के अरमान तोड़ने पड़ते है  अपनी राहों की पेचीदगी को हल करने के लिए किसी दुसरे के ऱास्ते मोड़ने पड़ते है  सपने बेचने के लिए सपने देखने पड़ते है अपनों की ख़ुशी के लिए झूठे वादे करने पड़ते है मैं अक्सर उम्मीद से भरी निगाहें लेकर लोगों के पास जाता हूँ लोग मुझे सुनते है, देखते है, समझते है फिर भी निराश होना पड़ता है मेरे सपने टुटते नहीं  तोड़ दिए जाते  है मेरी मंजिल की राहें मुडती नहीं मोड़ दी जाते है मैं खुद से लड़ता झगड़ता किसी किनारे बैठता हूँ एक पेड़ पर पड़े एक घोंसले की तरफ देखता हूँ , एक चिड़िया और दो नन्हे से...

( कव्वाली )इक नज़र करम की करदे ओ लाखो पे करने वाले

( कव्वाली ) मैंने सुना है तेरे दर पे बिगड़ी तकदीर बनती है तेरे बन्दों के दिल में तेरी तस्वीर बनती है मै भी अपनी तकदीर तुझसे लिखवाने आया हूँ पढ़ले चेहरे पे मेरे तूं  इसपे  फरियाद बनती है इक नज़र करम की करदे ओ लाखो पे करने वाले इक मेहर इधर भी करदे ओ लाखों पे करने वाले मै  दर पे तेरे आया हूँ और झोली खाली लाया हूँ तूं झोली मेरी भर दाता मुझपे भी करम अब कर दाता मै भी तो तेरा बंदा हूँ मेरी मुश्किल भी हर दाता मै भी तकदीर का मारा हूँ किस्मत रोशन करने वाले इक नज़र करम की करदे ओ लाखो पे करने वाले इक मेहर इधर भी करदे ओ लाखों पे करने वाले शिर्डी की कसम तुझे है साईं हमपर भी रहमत कर साईं हमने भी आवाज़ लगाईं है तेरे दर पे हमारी दुहाई है  रोशन कर दो मेरी राहें तकदीर ने लॉ बुझाई है खाली हाथ न भेज मुझे तुम  ओ झोली को भरने वाले इक नज़र करम की करदे ओ लाखो पे करने वाले इक मेहर इधर भी करदे ओ लाखों पे करने वाले  अपनी आँखे भी खोल साईं अब तो मुह से कुछ बोल साईं बड़ी दूर से दर तेरे आया हूँ  चाक-ए- जिगर को लाया हूँ मन की बातें पढ़ने वाले मई कितने फ़साने लाया हूँ...

( कववाली )

( कववाली ) मंजूर कर फरियाद बन्दे की ए मौला आँखों में भर के सवाल लाया हूँ नवाजता है तू गरीबनावाज़ है मौला मैं सारे जवाब ढूढ़ने आया हूँ ए खुदाया ए खुदाया ए खुदाया ए खुदाया ए खुदाया ए खुदाया ए खुदाया। …. जी रहे है तेरे करम सदका वरना कबके मर जाते हम ए खुदाया ए खुदाया ए खुदाया ए खुदाया ए खुदाया ए खुदाया ए खुदाया तेरी आँखों से नूर ले कर  देखी है हमने दुनिया तेरे पैरों की धूल लेकर हमने संवारी दुनिया तेरा गर न हो इशारा कुछ भी न कर ही पाते हम जी रहे है तेरे करम सदका वरना कबके मर जाते हम ए खुदाया ए खुदाया ए खुदाया ए खुदाया ए खुदाया ए खुदाया ए खुदाया हम बोले यां न बोले तू फिर भी जानता है हम देखे यां न देखे तू सब को देखता है तू  ज़रा नज़र हटाये दुनिया में  गम हो जाते हम जी रहे है तेरे करम सदका वरना कबके मर जाते हम ए खुदाया ए खुदाया ए खुदाया ए खुदाया ए खुदाया ए खुदाया ए खुदाया तू सबके दिल में रहता बंदा क्या ढूढता है तू हर जगह समाया अंजना घूमता है तेरी हो नज़र सवल्ली तेरे नूर में नहाते हम जी रहे है तेरे करम सदका वरना कबके मर जाते हम ए खुदाया ए खुदाया ए खुदाय...

ए जिंदगी कितने अजीब तेरे है रास्ते

ए जिंदगी कितने अजीब तेरे है रास्ते ए जिंदगी ग़म बेशुमार जीने के वास्ते है कभी खुशिओं के मेले और कभी तन्हा अकेले तू हसी को बाटता है और कभी मुस्कान लेले कैसी पहेली है यह हर कोई उलझा इसमें धुंधली ज़मीन है यह धुंधला सा दिखता इसमें जाये कहा टेढ़े है रास्ते ए जिंदगी कितने अजीब तेरे है रास्ते ए जिंदगी ग़म बेशुमार जीने के वास्ते बागों में बहारे यहाँ शबनमी फुहारे यहाँ और  कभी शाखों पे मिलते पतझड़ी अंगारे यहाँ साहिल पे डूबती है साँसों की कश्तिया और कभी मिलती है आँखों की मस्तियाँ जाएँ कहाँ जीने के रास्ते ए जिंदगी कितने अजीब तेरे है रास्ते ए जिंदगी ग़म बेशुमार जीने के वास्ते            (आरज़ू)

( ग़ज़ल ) कभी यूँ ही मेरी राहों में आये होते

 ( ग़ज़ल ) कभी  यूँ ही मेरी राहों में आये होते कभी यूँ ही मेरी आँखों में समाये होते प्यार हो जाता तुमसे बस यूँ ही होते होते धडकनों की उलझन में उलझे होते नज़रों की शर्मों हया में सुलझे होते प्यार हो जाता तुमसे बस यूँ ही होते होते करते आईने से हम पहरों तेरी बातें रंगीन से दिन बेचैन सी होती रातें प्यार हो जाता तुमसे बस यूँ ही होते होते मिलते टूटके पर कसक फिर भी होती कदम लडखडाते फिर वापिस जाते जाते प्यार हो जाता तुमसे बस यूँ ही होते होते कभी  यूँ ही मेरी राहों में आये होते कभी यूँ ही मेरी आँखों में समाये होते प्यार हो जाता तुमसे बस यूँ ही होते होते        (आरज़ू)

" एक इल्तज़ा "

              " एक इल्तज़ा " माये नी माये एक करम मुझपे करदे तू अपने अंदर ही मुझे दफ़न कर दे नहीं रखना पैर तेरी इस दुनिया में अपनी कोख को मेरा कफ़न कर दे तेरे गाँव की धूप जलाती है मुझे तेरे शहर की छाव रुलाती है मुझे दम घुटता है तेरी दुनिया को सोच के मेरा तू उस दुनिया में ही मुझे तबाह  कर दे वैहशी है कई इस समाज इस देस में कैसे पहचानू उन्हें अपनों के भेस में किसे पकडाऊ अपनी ऊँगली या हाथ हो सके माये तो इतना ही बयान करदे महसूस करके तुझे कांप जाती हूँ मैं दुनिया को तेरी नज़रों से भांप जाती हूँ मैं दिल सुलग जाता है वो चीखो-पुकार से तू मेरी धडकनों को अंदर ही फनाह कर दे मत सोच इसका तुझपे इल्ज़ाम होगा दुआ दूंगी तुझे, तेरा मुझपे एहसान होगा बेखौफ सांसे ली है तेरी इस कोख में मैंने इज्ज़त की मौत देके तू मेरा सम्मान कर दे माये नी माये मुझपे ये एहसान करदे  (आरज़ू)