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" एक इल्तज़ा "


              " एक इल्तज़ा "

माये नी माये एक करम मुझपे करदे
तू अपने अंदर ही मुझे दफ़न कर दे
नहीं रखना पैर तेरी इस दुनिया में
अपनी कोख को मेरा कफ़न कर दे

तेरे गाँव की धूप जलाती है मुझे
तेरे शहर की छाव रुलाती है मुझे
दम घुटता है तेरी दुनिया को सोच के मेरा
तू उस दुनिया में ही मुझे तबाह  कर दे

वैहशी है कई इस समाज इस देस में
कैसे पहचानू उन्हें अपनों के भेस में
किसे पकडाऊ अपनी ऊँगली या हाथ
हो सके माये तो इतना ही बयान करदे

महसूस करके तुझे कांप जाती हूँ मैं
दुनिया को तेरी नज़रों से भांप जाती हूँ मैं
दिल सुलग जाता है वो चीखो-पुकार से
तू मेरी धडकनों को अंदर ही फनाह कर दे

मत सोच इसका तुझपे इल्ज़ाम होगा
दुआ दूंगी तुझे, तेरा मुझपे एहसान होगा
बेखौफ सांसे ली है तेरी इस कोख में मैंने
इज्ज़त की मौत देके तू मेरा सम्मान कर दे
माये नी माये मुझपे ये एहसान करदे

 (आरज़ू)

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