" ऐ नदी मुझ प्यासे की तू प्यास बुझा जा कभी "
ऐ नदी मुझ प्यासे की तू प्यास बुझा जा कभी
सीने में तेरे उत्तर जाऊं मैं
जितना भी डूबूँ उभर जाऊं मैं
तुझसे मिले, मुझको गिले, और मिले ज़िंदगी
ऐ नदी मुझ प्यासे की तू प्यास बुझा जा कभी
सुलगे सुलगे से है अरमां मेरे
धुआं धुआं से है सपने मेरे
तू मेरी जाँ ज़िंदगानी है
तुझसे शुरू हर कहानी है
तू ही मेरी, पहली ख़ुशी, तू ही मेरी आखरी
ऐ नदी मुझ प्यासे की तू प्यास बुझा जा कभी
तेरी ही बाहों में आकर मुझे
मिलता सुकून आशिकी का मुझे
तुझमे ही धड़कन समाई है
तू ही खुदा तू खुदाई है
तू ही नशा, तू कहकशा, तू ही मेरी आशिकी
ऐ नदी मुझ प्यासे की तू प्यास बुझा जा कभी
( आरज़ू )
aarzoo-e-arjun
Comments
Post a Comment