( किस्मत का खेल )
ये किस्मत और इससे जुडी बातें बड़ी अजीब सी होती है
और सितारों का खेल भी बड़ा अजीब सा होता है
तुम खेलो न खेलो मगर ये तुमसे खेलती है .
बड़ी अजीब सी बात है कोई दिलचस्पी ले न ले,
इसे बड़ी दिलचस्पी रहती है हममें।
खुद ही इस खेल के कायदे कानून बनाता है
खुद ही तोड़ता है .खेल को दिलचस्प बनाने के लिए
कुछ खुशियों के पासे हमारी तरफ फेंकता है।
हम खुशियों में उलझ जाते है, खो जाते है
लगता है किस्मत मेहरबान है हमपर
मगर दिल भर जाता है उसका
तो दूसरा पासा फेंकता है दुःख का दर्द का.
ये सुख दुःख का खेल उसका
इसके कायदे क़ानून उसके
तो भला वो हार कैसे सकता है
हमें रोता बिलखता देख कर शायद
इस हेर फेर में उसे बड़ा मज़ा आता है
अलग अलग चेहरे के हाव भाव
उसे देखने को मिलते होंगे शायद.
किसी बच्चे को रेलगाड़ी के खिलोने के साथ
खेलते तो देखा होगा उसका मन होता है
तो वो गाड़ी को बार बार पटरी पे चक्कर लगवाता है
कभी पटरी खोल के उसे आडा तिरशा जोड़ देता है
कभी पटरी के आगे अपनी ऊँगली रख के
गाडी को गुजरने से रोकता है
ऐसे वो इसलिए करता है
तांकि उसकी दिलचस्पी बनी रहे
नहीं तो वो जल्दी रेलगाड़ी के खेल से ऊब जायेगा
हमारी किस्मत उस रेलगाड़ी के खेल की तरह
मज़ा तो ले सकती है मगर हम जीते जागते इंसान है
हम इंसानो का क्या ?
तकलीफ होती है तो चीखें निकलती है ,
आँखें चुप रहने का नाम नहीं लेती
दिल फटने को होता है
और हाथ पाँव सुन्न से पड़े
किसी हरकत की उम्मीद में होते है
हम नहीं खेलते ये खेल
हमें जबरन शामिल किया जाता है .
नहीं खेलना ये तकदीर का खेल
नहीं चाहिए ये चंद पलों की ख़ुशी
कोई मज़ा नहीं है इसमें
हम कभी जीत नहीं सकते।
यहाँ पर नियम समान नहीं है
ये खेल बराबरी का नहीं है
हम कठपुतली भी नहीं के आवाज़ नहीं उठा सकते
कमसे कम मैं तो चिल्ला के कहूँगा
मुझे नहीं खेलना तुम्हारा ये खेल
ये बेईमानी का खेल …।
आरज़ू-ए -अर्जुन
ये किस्मत और इससे जुडी बातें बड़ी अजीब सी होती है
और सितारों का खेल भी बड़ा अजीब सा होता है
तुम खेलो न खेलो मगर ये तुमसे खेलती है .
बड़ी अजीब सी बात है कोई दिलचस्पी ले न ले,
इसे बड़ी दिलचस्पी रहती है हममें।
खुद ही इस खेल के कायदे कानून बनाता है
खुद ही तोड़ता है .खेल को दिलचस्प बनाने के लिए
कुछ खुशियों के पासे हमारी तरफ फेंकता है।
हम खुशियों में उलझ जाते है, खो जाते है
लगता है किस्मत मेहरबान है हमपर
मगर दिल भर जाता है उसका
तो दूसरा पासा फेंकता है दुःख का दर्द का.
ये सुख दुःख का खेल उसका
इसके कायदे क़ानून उसके
तो भला वो हार कैसे सकता है
हमें रोता बिलखता देख कर शायद
इस हेर फेर में उसे बड़ा मज़ा आता है
अलग अलग चेहरे के हाव भाव
उसे देखने को मिलते होंगे शायद.
किसी बच्चे को रेलगाड़ी के खिलोने के साथ
खेलते तो देखा होगा उसका मन होता है
तो वो गाड़ी को बार बार पटरी पे चक्कर लगवाता है
कभी पटरी खोल के उसे आडा तिरशा जोड़ देता है
कभी पटरी के आगे अपनी ऊँगली रख के
गाडी को गुजरने से रोकता है
ऐसे वो इसलिए करता है
तांकि उसकी दिलचस्पी बनी रहे
नहीं तो वो जल्दी रेलगाड़ी के खेल से ऊब जायेगा
हमारी किस्मत उस रेलगाड़ी के खेल की तरह
मज़ा तो ले सकती है मगर हम जीते जागते इंसान है
हम इंसानो का क्या ?
तकलीफ होती है तो चीखें निकलती है ,
आँखें चुप रहने का नाम नहीं लेती
दिल फटने को होता है
और हाथ पाँव सुन्न से पड़े
किसी हरकत की उम्मीद में होते है
हम नहीं खेलते ये खेल
हमें जबरन शामिल किया जाता है .
नहीं खेलना ये तकदीर का खेल
नहीं चाहिए ये चंद पलों की ख़ुशी
कोई मज़ा नहीं है इसमें
हम कभी जीत नहीं सकते।
यहाँ पर नियम समान नहीं है
ये खेल बराबरी का नहीं है
हम कठपुतली भी नहीं के आवाज़ नहीं उठा सकते
कमसे कम मैं तो चिल्ला के कहूँगा
मुझे नहीं खेलना तुम्हारा ये खेल
ये बेईमानी का खेल …।
आरज़ू-ए -अर्जुन
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