( ये चाहत तेरी है या मेरी है )
बहुत अधूरा सा है चाँद फलक पर
बड़ी अधूरी सी है चांदनी
तारे मुँह छुपा के खड़े है शायद कहीं
रात के इस सन्नाटे में कोई सदा भी नहीं
फिर एक सरसराहट और कदमों की आहट
सोचता हूँ ये आहट तेरी है या मेरी
बेइरादे ये कदम चल पड़ते है बस यूँ ही
रास्तों से कभी गुफ्तुगू होती है
तो कभी मुँह फेरे खड़े से नज़र आते है हम दोनों
सोचता हूँ ये नाराज़गी तेरी है या मेरी
कितनी जिरह होती है दिल से मेरी
कितनी बार धड़कनें रूठ जाती है मुझसे
अजीब कशमकश में होती है ये धड़कनें
सोचता हूँ ये बेचैनी तेरी है या मेरी
कोई नाराजगी नहीं है लम्हातों से मेरी
पर कोई आँखों में देख कर बात नहीं करता
जाने क्यों सिर झुकाये आँख चुराए खड़े है सब
सोचता हूँ ये बेरुखी तेरी है या मेरी
मैं हसता भी हूँ दिल से मैं रोता भी हूँ दिल से
फिर भी कुछ बनावटी सा लगता है क्यों
मेरी आँखे लबों का साथ नहीं देती और मुस्कान चेहरे का
सोचता हूँ ये अजीब सी ख़ुशी तेरी है या मेरी
लोग कहते है चाहत दिल से होती है शायद
मुझे लगता है ये दिमाग से होती है शायद
मेरी अक्सर दिल से बातें होती है मगर
दिमाग कमी पेशी समझाता रहता है मुझे
सोचता हूँ ये मतलब परस्ती तेरी है या मेरी
एक सदा तो आये इन अंधेरों से कहीं
कोई हाथ तो बढ़ाए इन अंधेरों से कहीं
मैं टूट कर न चाहूँ तो मुझसे कहना,
तेरी रूह में न समाऊं तो मुझसे कहना
दिल गूंज उठता है ऐसे कई ख्याल से
सोचता हूँ ये चाहत तेरी है या मेरी
बहुत अधूरा सा है चाँद फलक पर
बड़ी अधूरी सी है चांदनी
तारे मुँह छुपा के खड़े है शायद कहीं
रात के इस सन्नाटे में कोई सदा भी नहीं
फिर एक सरसराहट और कदमों की आहट
सोचता हूँ ये आहट तेरी है या मेरी
बेइरादे ये कदम चल पड़ते है बस यूँ ही
रास्तों से कभी गुफ्तुगू होती है
तो कभी मुँह फेरे खड़े से नज़र आते है हम दोनों
सोचता हूँ ये नाराज़गी तेरी है या मेरी
कितनी जिरह होती है दिल से मेरी
कितनी बार धड़कनें रूठ जाती है मुझसे
अजीब कशमकश में होती है ये धड़कनें
सोचता हूँ ये बेचैनी तेरी है या मेरी
कोई नाराजगी नहीं है लम्हातों से मेरी
पर कोई आँखों में देख कर बात नहीं करता
जाने क्यों सिर झुकाये आँख चुराए खड़े है सब
सोचता हूँ ये बेरुखी तेरी है या मेरी
मैं हसता भी हूँ दिल से मैं रोता भी हूँ दिल से
फिर भी कुछ बनावटी सा लगता है क्यों
मेरी आँखे लबों का साथ नहीं देती और मुस्कान चेहरे का
सोचता हूँ ये अजीब सी ख़ुशी तेरी है या मेरी
लोग कहते है चाहत दिल से होती है शायद
मुझे लगता है ये दिमाग से होती है शायद
मेरी अक्सर दिल से बातें होती है मगर
दिमाग कमी पेशी समझाता रहता है मुझे
सोचता हूँ ये मतलब परस्ती तेरी है या मेरी
एक सदा तो आये इन अंधेरों से कहीं
कोई हाथ तो बढ़ाए इन अंधेरों से कहीं
मैं टूट कर न चाहूँ तो मुझसे कहना,
तेरी रूह में न समाऊं तो मुझसे कहना
दिल गूंज उठता है ऐसे कई ख्याल से
सोचता हूँ ये चाहत तेरी है या मेरी
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