आज ज़िंदगी से मुलाकात हो गई वाकया एक दो नहीं, तीन चार मेरे सामने आये हर वाकया ज़िंदगी के सच को लिए आईने की तरह मेरे सामने खड़ा था 1. भटके से राहों पे कहीं चल रहे थे मैंने देखा एक बूढ़ा लाचार सा आदमी कहीं सड़क पर खड़ा था मैली मटमैली धोती उसकी कई जगह से उसका कुर्ता फटा था हाथ और पाँव की नसें फूलती लाठी को पकडे जब चलता था आँखों की झुर्रियां और सिकुड़ती जब भी तेज़ हवा थी चलती आँखों का चश्मा था धुंदला बार बार साफ़ उसे करता था मैंने पूछा," बाबा" इतनी दोपहर गए किधर आये हो कहा," बेटा" उस पेड़ के पास जाऊंगा बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर पावों को लम्बा किया। लाठी को बगल में रख कर चश्मे को धोती से साफ किया . बढ़ी उत्सुकता मेरी पूछा मैंने "बाबा" "बस का इंतज़ार कर रहे हो" . कहा हसकर," नहीं बस यूँ ही यहाँ बैठा हूँ." फिर पूछा मैंने," क्या थक गए हो बाबा" बोले नहीं," मैं रोज़ यहाँ पर बैठता हूँ" फिर अधीर होके पूछा मैंने," क्या कोई आने वाला है" बो...
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